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*दादू सेवग सेवा कर डरै, हम थैं कछु न होइ ।*
*तूँ है तैसी बन्दगी, कर नहिं जाणै कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*ह्वै बरियां कब आवत है दिन,*
*बारहि बार कहै नहिं आई ।*
*बार हुई तब दूध चढ़ावत,*
*सेर उभै अवटात कड़ाई ॥*
*प्रीति लगी अवसेर१ घणी उर,*
*कंठ घुटै दृग नीर बहाई ।*
*ढील लगी बहु मात खिजै अब,*
*बेर करै जनि२ ले करि जाई ॥२१७॥*
*जब वामदेवजी आपको सेवा सौंपकर उस ग्राम चले गये तब नामदेवजी रात्रि में दिन के पूजा के समय के लिये छटपटाने लगे कि वह समय कब आएगा । और माता से पूछने लगे – माँ ! अभी सेवा का समय नहीं आया क्या ? ऐसा करते-करते प्रातःकाल हो गया ।
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नामदेव उठे स्नानादि और पूजा करके, दो सेर दूध को अच्छी प्रकार देखकर तथा छानकर, कड़ाही में चढाया और औटाने लगे । मन में इच्छा करते हैं, दूध को अच्छी प्रकार तैयार करूं ।
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हृदय में प्रभु-प्रेम बहुत है और चित्त में चिन्ता भी बहुत है कि – दूध के उत्तम बनने में कोई त्रुटि नहीं रह जाय । उत्तम रूप से तैयार होना चाहए, जिससे प्रभु पान कर लें । ऐसी चिन्ता करते हुये उनके नेत्रों से अश्रुजल बहने लगा, कंठ घुटने लगे ।
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दूध तैयार करने में बहुत देर लगने से माता ने कुछ क्रोध करके कहा – अब देर क्यों करता है ? भोग का समय हो गया है, शीघ्र दूध लेकर जा, भगवान् के भोग लगा ।
(क्रमशः)

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