सोमवार, 25 अप्रैल 2022

*पूर्ण ज्ञान तथा प्रेम के लक्षण*

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🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।*
*सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १०२.श्रीरामकृष्ण तथा ज्ञानयोग*
*(१)संन्यासी तथा संचय । पूर्ण ज्ञान तथा प्रेम के लक्षण*
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श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर के काली-मन्दिर में विराजमान हैं । अपने कमरे में छोटी खाट पर पूर्व की ओर मुँह किये हुए बैठे हैं । भक्तगण जमीन पर बैठे हैं । आज कार्तिक की कृष्णा सप्तमी है, ९ नवम्बर १८८४ । दोपहर का समय है । श्रीयुत मास्टर आये, दूसरे भक्त भी धीरे धीरे आ रहे हैं ।
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श्रीयुत विजयकृष्ण गोस्वामी के साथ कई ब्राह्म भक्त आये हुए हैं । पुजारी राम चक्रवर्ती भी आये हैं । क्रमशः महिमाचरण, नारायण और किशोरी भी आये । कुछ देर बाद और भी कई भक्त आये । जाड़ा पड़ने लगा है । श्रीरामकृष्ण को कुर्तें की जरूरत है । मास्टर से ले आने के लिए कहा था । वे नैनगिलाट के कुर्तों के सिवा एक और जीन का कुर्ता भी ले आये हैं; परन्तु इसके लिए श्रीरामकृष्ण ने नहीं कहा था ।
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श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) – तुम बल्कि इसे लेते जाओ तुम्हीं पहनना । इसमें दोष है । अच्छा, तुमसे मैंने किस तरह के कुर्तों ले लिए कहा था ।
मास्टर – जी आपने सादे कुर्तों की बात कही थी । जीन का कुर्ता ले आने के लिए नहीं कहा था ।
श्रीरामकृष्ण – तो जीन वाले को ही लौटा ले जाओ ।
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(विजय आदि से) 'देखो द्वारका बाबू ने एक शाल दिया था । मारवाड़ी भक्तों ने भी एक लाया था, पर मैंने नहीं लिया ।' श्रीरामकृष्ण और भी कहना चाहते थे, उसी समय विजय बोल उठे –
विजय – जी हाँ ठीक तो है । जो कुछ चाहिये और जितना चाहिये, उतना ही ले लिया जाता है । किसी एक को तो देना ही होगा । आदमी को छोड़ और देगा भी कौन ?
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श्रीरामकृष्ण – देनेवाले वही ईश्वर हैं । सास ने कहा, बहू, सब की सेवा करने के लिए आदमी हैं परन्तु तुम्हारे पैर दबाने वाला कोई नहीं है ।’ कोई होता तो अच्छा होता । बहू ने कहा, 'माँ, मेरे पैर भगवान दबायेंगे, मुझे किसी की जरूरत नहीं है ।’ उसने भक्तिपूर्वक यह बात कही थी ।
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"एक फकीर अकबरशाह के पास कुछ भेंट लेने गया था । बादशाह उस समय नमाज पढ़ रहा था और कह रहा था, ऐ खुदा मुझें दौलतमन्द कर दे । फकीर ने अब बादशाह की याचनाएँ सुनी तो उठकर वापस जाना चाहा । परन्तु अकबरशाह ने उससे बैठने के लिए इशारा किया ।
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नमाज समाप्त होने पर उन्होंने पूछा, तुम क्यों वापस जा रहे थे ? उसने कहा, 'आप खुद ही याचना कर रहे हैं, ऐ खुदा, मुझे दौलतमन्द कर दे । इसलिए मैंने सोचा, अगर माँगना ही है तो भिक्षुक से क्यों माँगू, खुदा से ही क्यों न माँगू ?
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विजय - गया में मैंने एक साधु देखा था । वे स्वयं कुछ प्रयत्न नहीं करते थे । एक दिन इच्छा हुई, भक्तों को खिलाऊँ । देखा, न जाने कहाँ से मैदा और घी आ गया । फल भी आये ।
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श्रीरामकृष्ण - (विजय आदि से) - साधुओं के तीन दर्जे हैं, उत्तम, मध्यम और अधम । जो उत्तम हैं, वे भोजन की खोज में नहीं फिरते । मध्यम और अधम दण्डियों की तरह के होते हैं । मध्यम जो हैं, वे नमोनारायण करके खड़े हो जाते हैं । जो अधम हैं वे न देने पर झगड़ा करते हैं । (सब हँसे ।)
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"उत्तम श्रेणी के साधु अजगर-वृत्ति के होते हैं । उन्हें बैठे हुए ही आहार मिलता है । अजगर हिलता-डुलता नहीं । एक छोकरा साधु था - बाल ब्रह्मचारी । वह कहीं भिक्षा लेने के लिए गया । एक लड़की ने आकर भिक्षा दी । उसके स्तन देखकर उसने सोचा, इसकी छाती पर फोड़ा हुआ है ।
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जब उसने पूछा तो घर की पुरखिन ने आकर उसे समझाया । इसके पेट में बच्चा होगा, उसके पीने के लिए ईश्वर इनमें दूध भर दिया करेंगे इसीलिए पहले से इसका बन्दोबस्त कर रखा है । यह बात सुनकर उस साधु को बड़ा आश्चर्य हुआ । तब उसने कहा, 'तो अब मुझे भिक्षा माँगने की क्या जरूरत है ? ईश्वर मेरे लिए भी भोजन तैयार कर दिया करेंगे ।
(क्रमशः)

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