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*दादू सोई सही साबित हुआ, जा मस्तक कर देइ ।*
*गरीब निवाजे देखतां, हरि अपना कर लेइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नामदेव जी*
*मूल छप्पय –*
*नामदेव वचन प्रभु सत करे,*
*ज्यूं नृसिंह प्रहलाद के ॥*
*प्रतिमा कर पय पाय, बच्छ अरु गऊ जिवाई ।*
*महल पातिस्या जरे, सेज जल पै मँगवाई ॥*
*देवल फेरयो् द्वार, सभा के सब हि सकुचे ।*
*अतुल रह्यो रंकार, द्रव्य बहु चहुड़े बुकचे ॥*
*राघव छान छई इसी, पार नहीं अहलाद के ।*
*नामदेव वचन प्रभु सत करे,*
*ज्यूं नृसिंह प्रहलाद के ॥२२६॥*
जैसे प्रहलाद के वचन भगवान् नृसिंह ने सत्य किये थे, वैसे ही नामदेव के वचन प्रभु ने सत्य किये थे ।
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नामदेवजी ने बचपन में ही भगवान् की मूर्ति को दूध पिलाया था । गाय को जीवित करके बछड़े को दूध पिलाया था । आपके साथ प्रतिकूल व्यवहार से बादशाह के महल जले थे । जल में पड़ी शय्या को आपने जल से पुनः मँगवाई थी ।
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भगवान् ने आपके लिये मंदिर का द्वार फेर दिया था । यह देखकर जूता लाने के कारण धक्का देकर इनको बाहर निकालने वाले सभासद सभी संकुचित हुये थे । एक दाता सेठ के आग्रह पर आपने तुलसीदल पर ‘राँ’ लिखकर कहा – इसके बराबर तोल दो । तब रंकार के साथ तुला पर द्रव्य की बहुत-सी गांठें चढ़ाई गई थीं तो भी रंकार के बराबर वे नहीं हो सकीं थीं ।
(क्रमशः)
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