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*सांई सरीखा सुमिरण कीजे, सांई सरीखा गावै ।*
*सांई सरीखी सेवा कीजे, तब सेवक सुख पावै ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*ले तबला१ हरि पास चल्यो मधि,*
*दूध निवात सुगंध मिलाई ।*
*है चित चाव डरै अगिता२ करि,*
*दास करै मम है सुखदाई ॥*
*मंद हँसै अति कान्ति लसै उर,*
*भाव वसै शिशु बुद्धि लगाई ।*
*पावन में मन आड़ करै जन,*
*देख परयो् कहि पी हरि राई ॥२१८॥*
जब दूध तैयार हो गया तब एक सुन्दर कटोरा१ में सुगंध द्रव्य और मिश्री मिला हुआ वह अल्प-उष्ण दूध लेकर नामदेव जी भगवान् विट्ठलदेव जी के पास चलै ।
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हृदय में अतीव प्रेमानन्द का हुलास और साथ ही अपनी अज्ञता२ का त्रास भी था अर्थात् मुझ से दूध भगवान् के पीने योग्य तैयार हुआ की नहीं । यदि दूध पान करके भगवान् मुझे अपना दास बना लेंगे तब तो मैं सदा सेवा-पूजा करके सुख ही पाऊंगा ।
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ऐसा विचार करते हुये जाकर अपने प्रभु का श्रीमुख अवलोकन किया । तो देखा, श्री विग्रह में कोटिन चाँदनी के भास के समान मृदु मुस्कान प्रकट हो रही है । कारण – नामदेव जी के प्रेम भाव का प्रकाश प्रभु ने अपने विग्रह में प्रकट कर दिया । यह देखकर नवीन अनुरागी बालक भक्त नामदेवजी ने अपनी बुद्धि विशेष करके भगवान् में लगाई और दूध पाने में मन लगा के दूध का कटोरा आगे रखकर पड़दा लगा दिया ।
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कुछ देर बाद पड़दा हटाकर बालक भक्त ने देखा तो सब दूध ज्यों का त्यों पड़ा है । तब कहा – विश्वराजन् हरे ! आप दूध पीजिये ।
(क्रमशः)

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