बुधवार, 6 अप्रैल 2022

शब्दस्कन्ध ~ पद #.१७९

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१७९)*
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*१७९. (गुजराती) राज विद्याधर ताल*
*एह्वो एक तूँ राम जी नाम रूड़ो ।*
*ताहरा नाम बिना बीजो सबै ही कूड़ो ॥टेक॥*
*तुम्ह बिन अवर कोई कलि मां नहीं, सुमरतां संत नें साद आपे ।*
*कर्म कीधा कोटि छोड़वे बाँधो, नाम लेतां खिणत ही ये कापे ॥१॥*
*संत नें सांकड़ो दुष्ट पीड़ा करे, वाहरे वाहलो वेगि आवे ।*
*पापनां पुंज पह्वां करी लीधो, भाजिया भै भर्म जोनि न आवे ॥२॥*
*साधनें दुहेलो तहाँ तूँ आकुलो, माहरो माहरो करीनें धाए ।*
*दुष्ट नें मारिबा संत नें तारिबा, प्रकट थावा तहाँ आप जाए ॥३॥*
*नाम लेतां खिण नाथ तें एकले, कोटिनां कर्मनां छेद कीधा ।*
*कहै दादू हिवें तुम्ह बिना को नहीं, साखी बोलें जे शरण लीधा ॥४॥*
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भा०दी०- हे राम! यथाऽद्वितीयः सर्वश्रेष्ठश्च भवान् तथा त्वदीयं नामाऽपि सर्वसाधनश्रेष्ठम- द्वितीयमतिगण्यते । तव नामस्मरणमात्रेणैव तु सतां परमानन्दः समुद्भवति । पूर्वजन्मकृता-संख्यकर्मबन्धानि तव नाम स्मरणमात्रेणैव भक्तस्य क्षणेनैव क्षीयन्ते । यदा दुष्टाः सज्जनान् बाधन्ते तदा शीघ्रमेवातुरः सन् तद्भाधानिवृत्तये धावसि । येन भक्तेन तव नाम स्मृत्वा पापपुञ्जप्रक्षीणं ज्ञानचोपलभ्य भेदजन्यो भ्रमो निरस्तः । ज्ञानेन यस्य भाविजन्मनो बन्धः छिन्नः । एतादृशे भक्ते दुःखिते सति स्वयमपि दुःखीभूय तद्रक्षणार्थ बैकुण्ठमपि परित्यज्य लक्ष्मीमय्यनवेक्ष्य ममाऽयं ममाऽयमिति मत्वा तत्राविर्भवसि । तवाऽऽविर्भावस्तु साधूनां परित्राणाय दुष्टानां वधाय भवति । तव नामग्रहण मात्रेणानन्तानां भक्तानां कर्म- बन्धनानि निवृत्तानि । त्वां बिना न ममान्य आधारः । अत एव सन्तस्त्वच्चरणारविन्दं समाश्रयन्ति । त्वमेव तेषां रक्षकोऽसि । अपारस्य तव महिमा केनाऽपि वर्णयितुं न शक्यते ।
उक्तं हि गीतायाम्-
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
पद्मपुराणेऽपि भूमिखण्डे ।
पापापहं व्याधि- विनाशरूपमानन्ददं दानवदैत्यनाशनम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीतमत्रैव पिबन्तु लोकाः ॥
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हे राम ! जैसे आप अद्वितीय सर्वश्रेष्ठ हैं, वैसे ही आपका नाम भी सब साधनों में अद्वितीय श्रेष्ठतम है और तो सब मिथ्या है । आपके नाम स्मरण मात्र से ही सन्तों को परमानन्द की प्राप्ति होती है । पूर्वजन्मकृत करोड़ों कर्मबन्धन भक्तों के नाम स्मरण मात्र से एक क्षण में ही नष्ट हो जाते हैं । जब दुष्ट पुरुष साधु पुरुषों को सताते हैं, तब आप शीघ्र ही दुःखी होकर उस बाधा को दूर करने के लिये दौड़ पड़ते हैं । 
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आपके नाम स्मरणमात्र से जिस भक्त ने अपने पाप-पुंजो को नष्ट का डाला तथा प्रभु का ज्ञान प्राप्त करके सारे भेदजन्य भ्रमों को दूर कर लिया और ज्ञान के द्वारा जिसने अपने भावी जन्मों का अभाव कर लिया, ऐसे भक्तों के दुःखी होने पर आप स्वयं दुःखी होकर उनकी रक्षा के लिये, लक्ष्मी और बैकुण्ठ को भी त्याग कर, “मेरा भक्त है, मेरा भक्त है”, ऐसा कहते हुए जहाँ पर भक्त है, वहाँ ही दौड़कर प्रकट हो जाते हो । 
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आपके नाम-ग्रहण मात्र से कितने ही भक्तों के भवबन्धन कट गये । आपके बिना हमारा और कोई दूसरा सहारा नहीं है । इसलिये सन्त आपकी शरण ग्रहण करते हैं, आप ही उनके रक्षक हैं । अहो ! आपकी महिमा तो अपार है, उसका वर्णन कौन कर सकता है ? 
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गीता में कहा है कि – साधुओं की रक्षा के लिये, दुष्टों के विनाश के लिये तथा धर्म की स्थापना के लिये आपका प्रतियुग में अवतार होता है । 
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पद्मपुराण में कहा है कि – भगवान् विष्णु पापों का नाश करके आनन्द प्रदान करते हैं । वे दानव और दैत्यों का विनाश करने वाले हैं । उनका अमृतमय नाम सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस नामामृत को यहीं लाकर सुलभ करा दिया । अतः सभी लोग उसका पान करें ।
(क्रमशः)

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