मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

*वेदान्त-विचार*

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*देख दीवाने ह्वै गए, दादू खरे सयान ।*
*वार पार कोई ना लहै, दादू है हैरान ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ हैरान का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(६)वेदान्त-विचार । मायावाद और श्रीरामकृष्ण*
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(महिमाचरण) “वेदान्त के विचार से संसार मायामय है - स्वप्न की तरह सब मिथ्या है । जो परमात्मा हैं, वे साक्षीस्वरूप हैं - जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति तीनों अवस्थाओं के साक्षीस्वरूप ये सब तुम्हारे ही भाव की बातें हैं । स्वप्न जितना सत्य है, जागृति भी उतनी ही सत्य है । तुम्हारे भाव की एक कहानी कहता हूँ, सुनो ।
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"किसी देश में एक किसान रहता था । वह बड़ा ज्ञानी था । किसानी करता था - स्त्री थी, एक लड़का बहुत दिनों के बाद हुआ था । नाम उसका हारू था । बच्चे पर माँ और बाप, दोनों का प्यार था, क्योंकि एकमात्र वहीं नीलमणि जैसा धन था ।
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किसान धर्मात्मा था । गाँव के सब आदमी उसे चाहते थे । एक दिन वह मैदान में काम कर रहा था, किसी ने आकर खबर दी, हारू को हैजा हुआ । किसान ने घर जाकर उसकी बड़ी दवादारू की, परन्तु अन्त में लड़का गुजर गया ।
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घर के सब लोगों को बड़ा शोक हुआ, परन्तु किसान को जैसे कुछ भी न हुआ हो । उल्टा वही सब को समझाता था कि शोक करने में कुछ नहीं है । फिर वह खेती करने चला गया । घर लौटकर उसने देखा, उसकी स्त्री रो रही है । उसने अपने पति से कहा, 'तुम बड़े निष्ठुर हो, लड़का जाता रहा और तुम्हारी आँखों से आँसू तक न निकले !'
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तब उस किसान ने स्थिर होकर कहा, 'मैं क्यों नहीं रोता, बतलाऊँ ? कल मैंने एक बड़ा भारी स्वप्न देखा । देखा कि मैं राजा हुआ हूँ और मेरे आठ बच्चे हुए हैं । बड़े सुख से हूँ फिर आँख खुल गयी । अब मुझे बड़ी चिन्ता है - अपने उन आठ लड़कों के लिए रोऊँ या तुम्हारे इस एक लड़के हारू के लिए रोऊँ ?'
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"किसान ज्ञानी था, इसीलिए वह देख रहा था, स्वप्न की अवस्था जिस तरह मिथ्या थी, उसी तरह जागृति की अवस्था भी मिथ्या है, एक नित्य वस्तु केवल आत्मा ही है ।
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"मैं सब कुछ लेता हूँ, तुरीय और जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति - सब कुछ । मैं पिछली तीनों अवस्थाओं को मानता हूँ । ब्रह्म और माया, जीव-जगत्, सब लेता हूँ, यदि मैं कुछ कम लूँ तो मुझे पूरा वजन न मिले ।"
एक भक्त - वजन में क्यों घटता है ? (सब हँसते है ।)
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श्रीरामकृष्ण – ब्रह्म जीवजगत् विशिष्ट हैं । पहले नेति नेति करते समय जीवजगत् को छोड़ देना पड़ता है । अहंबुद्धि जब तक है, तब तक वे ही सब हुए हैं, ऐसा भासित होता है - चौबीसों तत्त्व वे ही हुए हैं ।
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“बेल का सार कहो तो उसका गूदा ही समझा जाता है, तब बीज और खोपड़ा निकाल देने पड़ते हैं; परन्तु बेल वजन में कितना था । इसके कहने की आवश्यकता हुई तो केवल गूदा तौलने से काम नहीं चल सकता । तौलते समय गूदा, बीज, खोपड़ा, सब कुछ लेना चाहिए । जिसका गूदा है, उसके बीज भी हैं और खोपड़ा भी । जिनकी नित्यता है, लीला भी उन्हीं की है ।
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"इसलिए मैं नित्यता और लीला सब मानता हूँ । संसार को माया कहकर मैं उसका अस्तित्व लोप नहीं करता । यदि मैं वैसा करूँ तो वजन पूरा न मिले ।"
महिमाचरण - यह बहुत अच्छा सामञ्जस्य है । नित्यता से ही लीला है और लीला से ही नित्यता है ।
(क्रमशः)

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