शुक्रवार, 13 मई 2022

*गावत राम हि देवल१ जावै*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*साधु निर्मल मल नहीं, राम रमै सम भाइ ।*
*दादू अवगुण काढ कर, जीव रसातल जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निंदा का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*पद्य टीका*
*इन्दव – पाय परयो् फिर राख पहि,*
*नाम कहै मत संत दुखावै ।*
*मान लिई फिर नांहिं बुलावत,*
*गावत राम हि देवल१ जावै ॥*
*बाहर भीड़ निहार उपानत२,*
*बाँध लिई कटि जा पाद गावै ।*
*देख लिई किन चोट दिई उन,*
*देत धका चित में नहिं आवै ॥२२३॥*
उक्त घटना से अत्यन्त दुःखी होकर बादशाह नामदेव जी के चरणों में पड़ गया और प्रार्थना करने लगा – आप हमको अपने प्रभु हरि के कोप से बचाइये, जिससे वे मेरा अपराध क्षमा करें । नामदेवजी ने कहा – यदि मेरे प्रभु की क्षमा चाहते हो तो यह प्रतिज्ञा करो कि – फिर कभी भी किसी भी साधु को दुःख नहीं दूंगा । - 
“साधु सताये हानि त्रय, अर्थ धर्म अरु बंस । 
“टीला” नीके देखिये, रावण कौरव कंस ॥”
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यह बात बादशाह ने मान ली । तब अग्नि का उपद्रव शान्त हो गया । फिर चलते समय नामदेव ने बादशाह को कहा – मुझे फिर नहीं बुलाना । उसने कहा – नहीं बुलाऊंगा । इसके बाद आप पण्ढरपुर को चल दिये और शनैः शनैः राम नामों का संकीर्तन करते हुये पण्ढरपुर पहुँच गये और मन में विचारा पहले पण्ढरीनाथ के जाकर दर्शन करके और गुण गाकर फिर घर चलूंगा ।
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आकर देखा तो मंदिर के द्वार पर भारी भीड़ थी । नया जूता था, मन में संकल्प हुआ, जूता बाहर छोड़ने से तो भगवान् का दर्शन करने और पद गाने में विक्षेप होगा, मन इनकी ओर जायगा । भगवान् से मन हटना ही सबसे बड़ा पाप है । भगवान् सर्वत्र व्यापक हैं । जूते ले जाने से उनकी कुछ भी हानि नहीं होगी । मनुष्यों को बुरा लगता है । सो कपड़े में बाँधकर कमर में बाँध लेता हूँ । जूते को कमर में बाँधकर मंदिर में गये । भगवान् का दर्शन करके पद गाने लगे । प्रेम की मस्ती में नाचते नाचते कमर ढीली होने से किसी को जूता दीख गया ।
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उसने नामदेव जी के पांच-सात तो चोटें लगाई और धक्के देते हुये मंदिर के बाहर निकाल दिया किन्तु नामदेव के चित्त में किंचित भी रीस नहीं आई ।
(क्रमशः)

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