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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१९६)*
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*१९६. अन्य उपासक विस्मयवादी भ्रम । रंग ताल*
*साचा राम न जाणै रे, सब झूठ बखाणै रे ॥टेक॥*
*झूठे देवा झूठी सेवा, झूठा करे पसारा ।*
*झूठी पूजा झूठी पाती, झूठा पूजणहारा ॥१॥*
*झूठा पाक करै रे प्राणी, झूठा भोग लगावै ।*
*झूठा आड़ा पड़दा देवै, झूठा थाल बजावै ॥२॥*
*झूठे वक्ता झूठे श्रोता, झूठी कथा सुणावै ।*
*झूठा कलियुग सब को मानै, झूठा भ्रम दिढ़ावै ॥३॥*
*स्थावर जंगम जल थल महियल , घट घट तेज समाना ।*
*दादू आतम राम हमारा, आदि पुरुष पहिचाना ॥४॥*
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भादी० - ईश्वरातिरिक्तदेवाद्युपासकानामाश्चर्यं भ्रमञ्च प्रदर्शयति श्रीदादूदेवः । अज्ञा हि सच्चिदानन्दस्वरूपं श्रीरामस्य न विदन्ति । किन्तु मिथ्याभूतं देवभूतादिस्वरूपं परिकल्प्य पूजयन्ति तद्गुणानेव वर्णयन्ति । तेषामेव देवादिना सेवापूजाभोगप्रसादादिकं विदधति । तेषां पूजका अपि मिथ्याचारा: पूजाऽपि तेषां मिथ्यैव । तेषां कथाऽपि तादृश्येव । कथावाचका: श्रोतास्था श्रद्धां विनैव कथां निगदन्ति श्रोतारोऽपि विनैव मनसा तां कथां श्रृण्वन्ति । एवं कलियुगे सर्वेऽपि प्राणिनो दम्भाऽहंकारकामक्रोधपरायणा: सर्वामपिनपूजां मिथ्याभूतामेव कुर्वन्ति । अहन्तु समस्तस्थावर-जङ्गमात्मकेषु प्राणिनिकायेषु विद्यमानं परमात्मानं श्रीरामं भगवन्तं सच्चिदानन्दमादिपुरुवं चेतनमेव जानामि । तमेवाराधयामि ।
उक्तं श्रीभागवते ::
कलौ न राजञ्जगतां परं गुरुं त्रिलोकनाथानतपादपङ्कजम् ।
प्रायेण मा भगवन्तमच्युतं पश्यन्ति पाखण्डविभिन्नचेतसः ।
यन्नामधेयं प्रियमाण आतुरः पतन्स्खलन् वा विवशो गृणन् पुमान् ।
विमुक्तकर्गिल उत्तमां गतिं प्राप्नोति यक्ष्यन्ति न तं कलौ जनाः ॥
तस्मात्सर्वात्मना राजन् हृदिस्थं कुरु केशवम् ।
प्रियमाणो ह्यवहितस्ततो यासि परां गतिम्॥
प्रियमाणैरभिधेयो भगवान् परमेश्वरः ।
आत्मभावं नयत्यङ्ग सर्वात्मा सर्वसंश्रयः॥
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ईश्वर से अतिरिक्त देवादिकों की उपासना करने वालों का आश्चर्य और भ्रम प्रदर्शित कर रहे हैं । भाव यह है कि – अज्ञानी सच्चिदानन्द परमात्मा श्रीराम को नहीं जानते किन्तु मिथ्याभूत देवों की कल्पना करके उन्हीं का पूजन करते हैं । “उन्हीं के गुणों का कथन और उन्हीं देवताओं की सेवापूजा भोग-प्रसाद आदि करते रहते हैं । उनके पुजारी तथा उनकी पूजा व पूजा के साधन आदि सब मिथ्या(दिखावा) मात्र हैं ।”
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और उनकी कथा तथा कथावाचक और श्रोता आदि भी मिथ्या ही है । यह सब दम्भ है क्योंकि बिना श्रद्धा से कथा कहने वाला लोभ से कथा सुनाता है और सुनने वालों में भी श्रद्धा नहीं किन्तु दिखाने के लिये सुनते हैं कि हम श्रद्धालु हैं । इस प्रकार कलियुग में सारे ही प्राणी दम्भ अहंकार काम-क्रोध-परायण हो कर सभी पूजादि कार्य मिथ्या ही करते रहते हैं । मैं तो स्थावर जंगम सभी प्राणियों में स्थित सच्चिदानन्द आदि पुरुष चैतन्य स्वरूप ब्रह्म को ही जानता हूँ और उसकी ही आराधना करता हूँ ।
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श्रीभागवत में लिखा है कि –
हे परीक्षित ! श्रीभगवान् ही चराचर जगत् के पिता हैं और परम गुरु हैं । इन्द्र, ब्रह्मा आदि त्रिलोकाधिपति उनके चरणकमलों में अपना शिर झुकाकर सर्वस्व समर्पण करते रहते हैं । उनका ऐश्वर्य अनन्त है और वे एकरस अपने स्वरूप में स्थित है । परन्तु कलियुग में लोगों में इतनी मूढता आ जाती है और पाखण्डियों के कारण लोगों का चित्त इतना भटक जाता है कि प्रायः लोग अपने कर्म और भावनाओं के द्वारा भगवान् की पूजा से भी विमुख हो जाते हैं ।
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मनुष्य मरने के समय आतुरता की स्थिति में अथवा गिरते-फिसलते समय विवश होकर भी यदि भगवान् के किसी एक नाम का उच्चारण कर ले तो उसके सारे कर्मबन्धन छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और उसे उत्तम से उत्तम गति मिलती है । परन्तु हाय रे ! कलियुग से प्रभावित होकर उन भगवान् की आराधना से भी विमुख हो जाते हैं ।
(क्रमशः)

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