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*जब झूझै तब जाणिये, काछ खड़े क्या होइ ।*
*चोट मुँहैं मुँह खाइगा, दादू शूरा सोइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१३ संत शूर । कहरवा
रे मन शूर संत क्यों भाजै,
मुहि मिल भयूं१ मरण जे डरपै, तो दुहुं२ पवाड़ा३ लाजै ॥टेक॥
उलट्यूं४ ऊजह५ कहो क्यों पावै, जब लग दल हि न गाजै ।
मरतों मान जीवतों जाहिर६, जन्म मरण अध माँजे७ ॥१॥
जे सेवक संकट सौं डरपै, तबै स्वाँग कहाँ छाजै८ ।
देह उठाय फौज में आपै९, तब सब वीर विराजै१० ॥२॥
अरि दल जीत सकल शिर ऊपर, शूर सरोतरि११ गाजै ।
रज्जब रोपि रह्यों रण माँही, नाम नगारा बाजै ॥३॥१३॥
संत शूर का परिचय दे रहे हैं –
✦ अरे मन ! संत शूर योग संग्राम से कैसे भाग सकता है ? यदि वीर दोनों सेनाओं के मुख मिल जाने१ पर मरणे से डर के भागता है तो शत्रुदल और निजदल दोनों२ ही ओर३ से लज्जित होता है । वैसे ही संत शूर आसुर गुणदल और दैवीगुण दल के मुख मिलने से डर कर भागता है अर्थात साधन छोड़ देता है तो व्यवहार और परमार्थ दोनों पक्षों में लज्जित होता है ।
✦ शूर युद्ध और संत योग संग्राम में जब जब तक गर्जना न करे और लौट४ आये तो कहो वे दोनों उज्जल५ यश कैसे प्राप्त कर सकेंगे ? जैसे शूर का मरने पर अप्सरा सम्मान करती है और जीवित रहने से लोक में ख्याति६ होती है, वैसे ही संत पाप को हटा७ कर जन्म मरणादि को नष्ट करता है तब प्रभु द्वारा सम्मानित होता है और लोक में ख्याति होती है । यदि संत सेवक साधन कष्ट से डरेगा तब उसका भेष कहां शोभा८ देगा ? वीर शरीर को सेना को समर्पण९ कर देता है तब सभी स्थानों में विशेष रूप से शोभा१० पाता है ।
✦ वैसे ही संत कामादि शत्रु दल को जीत कर सब का शिरोमणी बनता है और उसके यश की गर्जना सबके कानों११ में पहुँचती है । वह योग संग्राम में अपने निष्ठा रूप पैरों को दृढ करके स्थिर रहता है । उसके यश को बढाने वाला हरि नाम रूप नगाड़ा बजता रहता है अर्थात वह निरंतर नाम चिन्तन करता रहता है ।
(क्रमशः)

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