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*दादू सब सुख स्वर्ग पयाल के, तोल तराजू बाहि ।*
*हरि सुख एक पलक का, ता सम कह्या न जाहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*साह करै हठ ले तुलसी-दल,*
*राम हि नाम लिख्यो अध दीजे ।*
*हाँसि करो मत ल्यो हमरी गति१,*
*टोल बराबरि तो किमि लीजे ॥*
*कांटहि मेल्हि चढावत कंचन,*
*होय बराबर नांहिं सुखीजे२ ।*
*बौत३ चढ़ै इक ताक४ धरयो् धन,*
*जातिहु पांतिहु को न नईजे५ ॥२२७॥*
सेठ ने बहुत आग्रह किया । तब आपने एक तुलसी-पत्र पर आधा राम का नाम “रा” लिखकर दिया और कहा – इसके बराबर तोल दीजिये ।
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सेठ ने कहा – हाँसी तो करिये नहीं, मेरी स्थिति१ समझ कर लीजिये अर्थात् मैं अधिक दे सकता हूं इससे अधिक ग्रहण करने की कृपा कीजिये । नामदेवजी ने कहा – मैं हँसी नहीं कर रहा हूं । तुम इसके बराबर तोलो तो सही फिर पता चलेगा कि मैं कैसे लेता हूँ अर्थात् कम ले रहा हूं या अधिक ले रहा हूं, यह पता लग जायगा ।
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कांटा पर तुलसी दल रखकर उसके बराबर सुवर्ण चढ़ाते जा रहे हैं किन्तु उसके बराबर नहीं होकर कम ही पड़ता जाता है । यह देखकर सेठ का मुख सूख२ गया अर्थात् उदास हो गया ।
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फिर एक ऐसी ताकड़ी४(बड़ा तुला) मँगवाई जिसमें पांच-सात-मण३ वस्तु तुल सके । उस पर अर्ध नाम युक्त तुलसी-दल रखकर अपने घर का सुवर्णादि सब धन चढाया तो भी उसके बराबर नहीं हुआ । तब अपने जातिपांति के भाइयों का धन मँगवाकर चढ़ाया तो भी तुला का पलड़ा नीचे५ नहीं गया अर्थात् अर्ध नाम युक्त तुलसी-दल वाला पलड़ा ही भारी रहा ।
(क्रमशः)

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