शुक्रवार, 20 मई 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ११३/११६*

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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ११३/११६*
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उपज्या नहिं अरु सकल है, तेज पुंज प्रकास ।
झिल मिल जोति अनंत है, सो कहि जगजीवनदास ॥११३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि न जन्म के भी जो सब में है । उनका तेज पुंज प्रकाश सर्वत्र है । उस प्रकाश की ज्योति झिलमिल होकर आदि अनंत तक प्रसारित है ।
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उपज्या नहिं अरु सकल है, अकल२ कल्या क्यों जाइ२ ।
कहि जगजीवन गह हरि, क्यौं करि गहिये ताहि ॥११४॥
{२-२. कल्या क्यों जाइ-(अखण्ड का) विभाजन कैसे किया जा सकता है}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि न जन्मकर भी वे सर्वत्र हैं उनका विभाजन नहीं हो सकता है, हम परमात्मा की कृपा ही ग्रहण करे अन्य की नहीं ।
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उपज्या नहिं अरु सकल है, अबिगत अलख अनंत ।
कहि जगजीवन आदि है, सोइ हमारा कंत३ ॥११५॥
{३. कंत-स्वामी(मालिक)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो न जन्म कर भी सब में है जो अविगत अलख, व अनंत है । संत कहते हैं कि जो आरम्भ से ही हमारे साथ वे ही हमारे मालिक है ।
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उपज्या नहिं अविगत धणी, स्वयं ब्रह्म सोइ रांम ।
कहि जगजीवन गगन के, निज जन राखै नांम ॥११६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं जो जन्मा नहीं, जाने न जा सकने वाले वे ही ब्रह्म हैं वे ही राम हैं । जैसे आकाश के लोग विभिन्न नाम रखते हैं । गगन, व्योम, नभ आदि । ऐसे ही परमात्मा के विभिन्न नाम हैं ।
(क्रमशः)

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