गुरुवार, 19 मई 2022

*'मैं' 'तुम' है तब तक नाम-रूप भी हैं*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*दादू मैं नाहीं तब एक है, मैं आई तब दोइ ।*
*मैं तैं पड़दा मिट गया, तब ज्यूं था त्यूं ही होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
श्रीरामकृष्ण हँसमुख हो भक्तों के साथ बातचीत कर रहे हैं । इसी समय अधर अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर श्रीरामकृष्ण के पास आकर बैठे ।
अधर - (बंकिम को दिखाकर, श्रीरामकृष्ण के प्रति) - महाराज, ये बड़े विद्वान है; अनेक पुस्तकें लिखी हैं । आपको देखने आये हैं । इनका नाम है बंकिमबाबू ।
.
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए) – बंकिम ! तुम फिर किसके भाव में बंकिम (टेढ़े) हो भाई !
बंकिम - (हँसते हँसते) - जी महाराज, जूते की चोट से ! (सभी हँसे) साहब के जूते की चोट से टेड़ा ।
.
श्रीरामकृष्ण - नहीं जी, श्रीकृष्ण प्रेम से बंकिम बने थे । श्रीमती राधा के प्रेम से त्रिभंग हुए थे । कृष्ण-रूप की व्याख्या कोई कोई करते हैं, श्रीराधा के प्रेम से त्रिभंग ।
"काला क्यों है जानते हो ? और साढ़े तीन हाथ - उतने छोटे क्यों है ?
.
"जब तक ईश्वर दूर हैं, तब तक काले दिखते हैं; जैसा समुद्र का जल दूर से नीला दिखता है । समुद्र के जल के पास जाने से और हाथ में उठाने से फिर जल काला नहीं रहता, उस समय बहुत साफ-सफेद दिखता है । सूर्य दूर है, इसलिए छोटा दिखता है; पास जाने पर फिर छोटा नहीं रहता, ईश्वर का स्वरूप ठीक जान लेने पर फिर काला भी नहीं रहता, छोटा भी नहीं रहता । यह बहुत दूर की बात है । समाधिमग्न न होने से उन्हीं की सब लीला है यह समझ में नहीं आता । 'मैं' 'तुम' है तब तक नाम-रूप भी हैं । उन्हीं की सब लोला है । 'मैं’ ‘तुम' जब तक रहते हैं, तब तक वे अनेक रूपों में प्रकट होते हैं ।
.
"श्रीकृष्ण पुरुष हैं, श्रीमती राधा उनकी शक्ति हैं - आद्याशक्ति । पुरुष और प्रकृति युगल मूर्ति का अर्थ क्या है ? पुरुष और प्रकृति अभिन्न हैं । उनमें भेद नहीं है । पुरुष प्रकृति के बिना नहीं रह सकता, प्रकृति भी पुरुष के बिना नहीं रह सकती । एक का नाम करने से ही दूसरे को उसके साथ ही समझना होगा । जिस प्रकार अग्नि और उसकी दाहिका शक्ति । दाहिका शक्ति को छोड़कर अग्नि का चिन्तन नहीं किया जा सकता और अग्नि को छोड़कर दाहिका शक्ति का भी चिन्तन नहीं किया जा सकता ।
.
इसलिए युगल-मूर्ति में श्रीकृष्ण की दृष्टि श्रीमती की ओर, और श्रीमती की दृष्टि श्रीकृष्ण की ओर है । श्रीमती का गौर वर्ण है, बिजली की तरह श्रीमती ने नीली साड़ी पहनी है और उन्होंने नीलकान्त मणि से अंग को सजाया है । श्रीमती के चरणों में नुपुर है, इसलिए श्रीकृष्ण ने भी नुपुर पहने हैं, अर्थात् प्रकृति के साथ पुरुष का अन्दर तथा बाहर मेल है ।"
.
ये सब बातें समाप्त हुईं । अब अधर के बंकिम आदि मित्रगण अंग्रेजी में धीरे धीरे बातें करने लगे । श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए बंकिम आदि के प्रति) - क्या जी आप लोग अंग्रेजी में क्या बातचीत कर रहे हैं ? (सभी हँसे ।)
अधर - जी, इसी विषय में जरा बात हो रही थी, कृष्णरूप की व्याख्या की बात !
.
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए सभी के प्रति) - एक कहानी की याद आने से मुझे हँसी आ रही है । सुनो कहानी कहूँ । नाई हजामत बनाने गया था । एक भद्र पुरुष हजामत बनवा रहे थे । अब हजामत बनवाते बनवाते उन्हें जरा कहीं अस्तुरा लग गया और उस भद्र पुरुष ने कहा 'डॅम' (damn) परन्तु नाई तो डॅम का मतलब नहीं जानता था । जाड़े का दिन था, उसने अस्तुरा आदि छोड़-छाड़कर अपनी कमीज की अस्तीन उठाकर कहा 'तुमने मुझे डॅम कहा, अब कहो, इसका मतलब क्या है ?'
.
उस व्यक्ति ने कहा, 'अरे, तू हजामत बना न ! उसका मतलब विशेष कुछ भी नहीं है, परन्तु जरा होशियारी से बनाना !' नाई भी छोड़नेवाला न था । वह कहने लगा, 'डॅम का मतलब यदि अच्छा है, तो मैं डॅम, मेरा बाप डॅम, मेरे चौदह पुरुष डॅम हैं । (सभी हँसे ।) और डॅम का मतलब यदि खराब हो तो तुम डॅम, तुम्हारा बाप डॅम, तुम्हारे चौदह पुरुष डॅम हैं । (सभी हँसे ।) फिर केवल डॅम ही नहीं - डॅम डॅम डॅम डॅम ।’ (सभी जोर से हँसे ।)
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें