रविवार, 22 मई 2022

*साह कहै इतनो ही लइजे*

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*संगहि लागा सब फिरै, राम नाम के साथ ।*
*चिंतामणि हिरदै बसै, तो सकल पदार्थ हाथ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*चिन्त भई सब ही नर नगर,*
*नाम कहै इक और करीजे ।*
*तीरथ न्हान व्रतादिक दान,*
*किया सब आन सु मांहिं धरीजे ॥*
*हार रहे सु पला नहिं ऊठत,*
*साह कहै इतनो ही लइजे ।*
*लेर करैं किमि नांहिं भयो सम,*
*नाम यहै अधिकार सुनीजे ॥२२८॥*
उक्त सब धन भी जब तुलसी-दल युक्त आधे नाम के बराबर नहीं हुआ तब सेठ के परिवार के नर-नारियों और चतुर लोगों को बड़ी चिन्ता हुई । भगवत् नाम के आगे धनादि तुच्छ हैं, यह सिद्धकर धर्म-कर्म भी नाम के आगे हलके ही हैं यह दिखाने के लिये नामदेवजी ने कहा.........
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– आप लोग एक काम और करो – तीर्थ स्नान, व्रत, दानादि सुकर्म धर्म किये हों उन सबका फल भी इस पर चढ़ा दो । वह सब भी चढ़ा दिया गया ।
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तब भी अर्धनाम युक्त तुलसी दल वाला पलड़ा भूमि पर ही पड़ा रहा । तब हार मानकर सेठ ने कहा – भगवन् ! इतना ही लेने की कृपा करिये ।
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नामदेवजी ने कहा – यह सब धन और पुण्य लेकर मैं क्या करूंगा ? तुम सबने प्रत्यक्ष देख लिया है कि मेरा धन तो रामनाम ही है । उसके आधे के बराबर भी ये सब नहीं हो सके हैं । अतः आप लोग सुनलें, नाम का ऐसा सामर्थ्य है वा मुझे नाम चिन्तन का ही अधिकार है, धन लेने का नहीं । आप लोग भी धन धर्मादि का अभिमान छोड़कर नाम चिन्तन में अपना मन लगाओ । 
“धन व्रत तीर्थ रु दान तप, अर्ध नाम सम नाहिं ।
नाम ने निर्णय किया, तोल तुला के मांहि ॥”
(क्रमशः)

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