रविवार, 22 मई 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ११७/१२०*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ११७/१२०*
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उपज्या नहिं आया नहीं, गया नहीं किहिं गांम ।
कहि जगजीवन अकल है, सकल रहै सब ठांम ॥११७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो जन्मा नहीं कहीं से आया नहीं कहीं गया नहीं । किसी गांव में नहीं गया वह निरंतर रहने वाले प्रभु सब स्थानों पर रहते हैं ।
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उपज्या नहिं अरु सकल है, नहीं सु नांहीं ठांम ।
कहि जगजीवन जे लहैं, सोइ कहै गहि रांम ॥११८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु न जन्म कर भी सबमें हैं । कोइ एक निश्चित स्थान नहीं है जो उनसे लय रहते हैं वे ही प्रभु का सानिध्य प्राप्त करते हैं ।
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उपज्या नहिं अरु सकल है, देही मांहि बिदेह ।
कहि जगजीवन अधर धर्या मंहि, अबिगत धरी न देह ॥११९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो जन्मा नहीं और सबमें है देह होते हुए भी विदेह है । जो धरती के आधार है पल कोइ न जान पाये इसलिए विदेह है ।
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निराकार उपज्या नहीं, है सब मांहीं रांम ।
कहि जगजीवन देव मुनि, कोइ जांणै किहिं ठांम ॥१२०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वे निराकार ब्रह्म उपजे नहीं हैं, सबमें राम हो विराज रहे हैं । सभी देव मुनि सब कोइ उन्हें कभी कहीं और कभी कहीं जानते हैं ।
(क्रमशः)

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