शनिवार, 21 मई 2022

*श्रीरामकृष्ण और प्रचारकार्य*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*फल पाका बेली तजी, छिटकाया मुख मांहि ।*
*सांई अपना कर लिया, सो फिर ऊगै नांहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)श्रीरामकृष्ण और प्रचारकार्य*
सब की हँसी बन्द होने पर बंकिम ने फिर बातचीत प्रारम्भ की ।
बंकिम - महाराज, आप प्रचार क्यों नहीं करते ?
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हँसते ) – प्रचार ? वह सब गर्व की बातें हैं । मनुष्य तो क्षुद्र जीव है । प्रचार वे ही करेंगे । जिन्होंने चन्द्र-सूर्य पैदा करके इस जगत् को प्रकाशित किया है । प्रचार करना क्या साधारण बात है ? उनके दर्शन देकर आदेश न देने तक प्रचार नहीं होता ।
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परन्तु प्रचार करने से तुम्हें कोई रोक नहीं सकता । तुम्हें आदेश नहीं मिला, फिर भी तुम बक-बक कर रहे हो; वही दो दिन लोग सुनेंगे फिर भूल जायेंगे । जैसे एक लहर । जब तक तुम कह रहे हो, तब तक लोग कहेंगे, 'अहा, अच्छा कह रहे हैं वे ।’ तुम रुकोगे, उसके बाद कहीं कुछ भी न होगा ।
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“जब तक दूध की कढ़ाई के नीचे आग जलती रहेगी, तब तक दूध खौल करके उबल उठता है । लकड़ी खींच लो, दूध भी ज्यों का त्यों नीचे उतर गया ! “और साधना करके अपनी शक्ति बढ़ानी चाहिए, नहीं तो प्रचार नहीं होता ।
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'अपने सोने के लिए जगह नहीं पाता और ऊपर से शंकरा को पुकारता हैं ।' अपने ही सोने के लिए स्थान नहीं, फिर पुकारता है, 'अरे शंकरा, आओ मेरे पास आकर सोओ ।'
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"उस देश में हालदारों के तालाब के किनारे लोग रोज शौच को जाते थे, सबेरे लोग आकर देखते थे और गाली-गलौज करते थे । लोग गाली देते थे, फिर भी लोगों का शौच जाना बन्द नहीं होता था । अन्त में मुहल्लेवालों ने अर्जी भेजकर कम्पनी को सूचित किया ।
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उन्होंने एक नोटिस लगा दिया, 'यहाँ पर शौच जाना या पेशाब करना मना है, जो ऐसा करेगा उसे सजा दी जायेगी ।’ उसके बाद सब एकदम बन्द और फिर कोई गड़बड़ी नहीं । कम्पनी का हुक्म - सभी को मानना होगा ।
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"उसी प्रकार ईश्वर का साक्षात्कार होने पर यदि वे आदेश दें, तभी प्रचार होता है, लोकशिक्षा होती है, नहीं तो तुम्हारी बात कौन सुनेगा ?" इन बातों को सभी गम्भीर भाव से स्थिर होकर सुनने लगे ।
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श्रीरामकृष्ण - (बंकिम के प्रति ) - अच्छा, आप तो बड़े पण्डित हैं, और कितनी पुस्तकें लिखी हैं आपने ! आप क्या कहते हैं, मनुष्य का क्या कर्तव्य है ? साथ क्या जायेगा ? परकाल तो है न ?
बंकिम – परकाल ? वह क्या चीज है ?
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श्रीरामकृष्ण - हाँ, ज्ञान के बाद और दूसरे लोक में जाना नहीं पड़ता, पुनर्जन्म नहीं होता । परन्तु जब तक ज्ञान नहीं होता, ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती, तब तक संसार में लौटकर आना पड़ता है, बचने का कोई भी उपाय नहीं है । तब तक परलोक भी है । ज्ञान प्राप्त होने पर, ईश्वर का दर्शन होने पर मुक्ति हो जाती है - और आना नहीं पड़ता ।
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उबाला हुआ धान बोने से फिर पौधा नहीं होता । ज्ञानरूपी अग्नि से यदि कोई उबाला हुआ हो, तो उसे लेकर और सृष्टि का खेल नहीं होता । वह गृहस्थी कर नहीं सकता, उसकी तो कामिनी-कांचन में आसक्ति नहीं है । उबाले हुए धान को फिर खेत में बोने से क्या होगा ?
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बंकिम - (हँसते हँसते) - महाराज, हाँ और घास-पतवार से भी तो पेड़ का कार्य नहीं होता !
श्रीरामकृष्ण - परन्तु ज्ञानी घास-पतवार नहीं हैं । जिसने ईश्वर का दर्शन किया है, उसने अमृतफल प्राप्त किया है - वह कद्दू फल नहीं है ! उसका पुनर्जन्म नहीं होता । पृथ्वी कहो, सूर्यलोक कहो, चन्द्रलोक कहो - कहीं पर भी उसे आना नहीं पड़ता ।
(क्रमशः)

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