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*दादू राम कसै सेवक खरा, कदे न मोड़ै अंग ।*
*दादू जब लग राम है, तब लग सेवक संग ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पारिख का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*लाकड़ ल्याय चिता हि बनावत,*
*गोद लियो द्विज साथ जरूंगो ।*
*राम हँसे तव पारिख लेत सु,*
*छोड़ करै मत नांहिं करूंगो ॥*
*भक्तन प्यास लगी जल ल्यावत,*
*भूत बध्यो अति मैं न डरूंगो ।*
*लै पद गावत झांझ बजावत,*
*रूप कर्यो हरि यूंहि तिरूंगो ॥२३०॥*
ब्राह्मण के मर जाने से लोग कहने लगे, नामदेव को ब्राह्मण की हत्या लगी है, यह छूटने वाली नहीं है । अब इनके साथ खानपानादि का व्यवहार नहीं रखना चाहिये । इधर नामदेवजी चिता बना के ब्राह्मण को गोद में लेकर चिता पर बैठ गये और एक आज्ञाकारी मनुष्य को कहा अग्नि लगादो । मैं इनके साथ जलूंगा ।
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तब ब्राह्मण बने हुये रामजी हँसते हुये बोले – मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था, तुम परीक्षा में पूरे उतरे हो किन्तु अब तुम्हारा शरीर वृद्ध हो गया है । इसलिये एकादशी व्रत छोड़ दो । भगवान् की आज्ञा तो मान्य थी ही । नामदेवजी ने कहा – अच्छा नहीं करूंगा । फिर भगवान् अन्तर्धान हो गये । सबने नामदेवजी का जय घोष किया और बड़ी श्रद्धा पूर्वक भक्त नामदेव के चरणों में प्रणाम किया ।
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भक्तों के साथ यात्रा करते समय एक दिन एक बावड़ी पर ठहरे थे । रात्रि में भक्तों को प्यास लगी । उस बावड़ी में भूत रहता था । यह बात प्रसिद्ध थी । इसलिये वहां के लोग तो रात्रि के समय को छोड़कर दिन में भी भीतर जाने से डरते थे । नामदेवजी ने कहा – मैं जल ले आऊंगा । आप जल लाने बावड़ी में घुसे तब आप के सामने आकर भूत बहुत बढ़ गया ।
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उसे देखकर अपने मन में यह कहकर कि मैं कदापि नहीं डरूंगा, झांझ बजाते हुये लयपूर्वक पद गाने लगे और बोले – हे हरे ! आपने अच्छा रूप बनाया है । मैं इस प्रकार ही आपके दर्शन करके संसार से पार हो जाऊंगा । उस समय उनने जो पद गाया था सो यह है –
‘भले पधारो लंबक नाथ ॥टेक॥
धरनी पाँव स्वर्ग लौ माथा, जोजन भर के लाँबे हाथ ॥
शिव सनकादिक पार न पावैं, अनगिन साज सजावें साथ ।
नामदेव के तुम ही स्वामी, कीजे प्रभुजी मोहि सनाथ ॥’
फिर भूत में ही भगवान् प्रकट हो गये थे ।
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एक समय आपकी रुखी रोटी लेकर कुत्ता भागा जा रहा था । तब भी आपने कुत्ते को भगवान् का रूप जानकर यह कहते हुये कि आप रुखी रोटी का भोग नहीं लगावें, घी की कटोरी लेकर पीछे भागे थे । तब भी भगवान् ने आप पर प्रसन्न होकर उस कुत्ते के शरीर से ही प्रकट होकर चतुर्भुज रूप में दर्शन दिये थे और कहा था – कुत्ते में भी तूने मुझे ही जाना । नामदेवजी यह कहते हुये कि – आप किसमें नहीं हैं ? भगवान् के चरणों में पड़े थे ।
(क्रमशः)

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