गुरुवार, 26 मई 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ १२५/१२८*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ १२५/१२८*
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कहि जगजीवन देह धरि, नांउ धराया आइ ।
गह्या लह्या खेल्या कह्या, (सो) अबिगत कह्या न जाइ ॥१२५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिन्होंने जन्म कर देह धारण करी नाम धराया । ग्रहण किया व लिया दिया संसार में लीला की वे अवतार कहे जाते हैं अविगत नहीं ।
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लखै पराये जीव की, कहै अगम की बात ।
जगजीवन सूझै सकल, गोबिंद का गुन गात ॥१२६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो दूसरे जीवों को देखते रहे और अगम ब्रह्म की बात करें । और जो गोविंद गुण गाते हुये सब जानते हो कि प्रभु की लीला क्या है ।
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जूण्यां१ पाछै जगत गुरु, केइ जुग२ पकडी मौंनि ।
कहि जगजीवन अबोल्या, सहज समानां सुंनि ॥१२७॥
{१. जूण्यां-योनि में आणे(अवतार लेने) के बाद} (२. केइ जुग-चिर काल तक)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि योनियों में आने के बाद जीव गुरु महाराज के ज्ञान से मौन धारण कर बिना उच्चारण के शून्य में समाता है ।
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रांम सुंणी तब लागि कहीं, अब मिलि गहिता मुंनि ।
कहि जगजीवन कही सौ कहसी, सबद समाना सुंनि ॥१२८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जब प्रभु कृपा करते हैं तब ही लय लगती है । तब जीव मौन हो रहता है । वे फिर जो प्रेरणा होती है । वह ही कहते हैं उनके शब्द भी मौन जैसे होते हैं ।
इति पीव पिछांणन का अंग संपूर्ण ॥२३॥
(क्रमशः)

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