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*दादू सब ही मृतक समान हैं, जीया तब ही जाण ।*
*दादू छांटा अमी का, को साधु बाहे आण ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*जात चले मग खंभ खड़ो इक,*
*पूछत मारग बोलत नांहीं ।*
*गात भये पद ताल बजावत,*
*काढि हरी कर बोल बताहीं ॥*
*गाडि हिं बैल जुप्यो सो गयो मर,*
*रोय सु नाम के पाँय परांहीं ।*
*ले कर झांझ बजावत गावत,*
*बैल उठ्यो जुपि के घर जांहीं ॥२३१॥*
एक समय नामदेव एक वन के मार्ग से जा रहे थे । वन में मार्ग दो बन गये । नामदेव ने यह तो सुना था कि जहां दो मार्ग बनते हैं, उनमें एक कूंतल को और दूसरा वली को जाता है किन्तु यह याद नहीं रहा कि कौन सा किस को जाता है । उसी स्थान में एक पत्थर का खम्भा खड़ा था । उसमें युद्ध में मरे हुए किसी वीर की मूर्ति थी ।
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उसी को आप भगवान् का रूप जानकर –
टमर टमर क्या देखता, एक बोल क्यों न बोलता ।
कीधौं कूंतल कीधौं वली, नामदेव की पूरो रली ॥”
बताइये मेरे जाने का मार्ग कौन सा है ? वह नहीं बोला । तब आप उसे प्रसन्न करने के लिये करताल बजाकर पद गाने लगे । तब उसी खम्भ से हरि ने हाथ निकाल कर संकेत करते हुए बोलकर कहा – यह जायगा । कीधौं=किधर । रली=इच्छा ।
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एक समय किसी गाडी वाले का बैल गाड़ी में जुता हुआ था सो चलता चलता ही सहसा मर गया । वहां नामदेव जी थे । गाड़ी वाल रोता हुआ श्रेष्ठ भक्त नामदेव जी के चरणों में पड़कर प्रार्थना करने लगा – आप तो मरे हुए को जीवित कर देते हैं । पहले भी आपने गाय जीवित करदी थी । मैं बहुत गरीब हूँ, अब एक बैल से गाड़ी नहीं चल सकती, आप मेरे बैल को जीवित कर दें ।
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उसे अत्यधिक दुःखी देख कर नामदेव जी ने हाथ में झांझ उठाई और बजाते हुए भगवत् यश गाने लगे । तब बैल उठकर गाड़ी के जुप गया और घर चला गया । इस प्रकार आपके अनेक चरित्र हैं । महाराष्ट्र के वारकरी पंथ के भी एक प्रकार से आप ही संस्थापक हैं । अनेक लोग नामदेवजी की प्रेरणा से भक्ति रूप पावन पंथ में प्रवृत्त हुये हैं । आप ८० वर्ष की अवस्था में वि. सं. १४०७ में देह त्याग कर परमधाम पधारे थे ।
(क्रमशः)

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