मंगलवार, 3 मई 2022

शब्दस्कन्ध ~ पद #.१९०

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१९०)*
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*१९०. भगवंत भरोसा । ललित ताल*
*दादू मोहि भरोसा मोटा,*
*तारण तिरण सोई संग मेरे, कहा करै कलि खोटा ॥टेक॥*
*दौं लागी दरिया तै न्यारी, दरिया मंझ न जाई ।*
*मच्छ कच्छ रहैं जल जेते, तिन को काल न खाई ॥१॥*
*जब सूवै पिंजर घर पाया, बाज रह्या वन मांहीं ।*
*जिनका समर्थ राखणहारा, तिनको को डर नांहीं ॥२॥*
*साचे झूठ न पूजै कबहूँ, सत्य न लागै काई ।*
*दादू साचा सहज समाना, फिर वै झूठ विलाई ॥३॥*
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भा०दी० - यो महतो महीयान् परमात्माऽस्ति तस्मिन्नेव मे पूर्णविश्वासोऽस्तीति स मां त्रास्यति कलिदोषात् । अत: सर्वसमर्थ स्वामिनि विद्यमाने सति नाऽहं कलेविभेमि । स च संसार- सागरोद्धारकस्तदा तदने कोऽयं वराकः कलि: प्रभवेत् । यथा वनाग्नि: समुद्रजलमग्नान् मत्स्यान् कच्छपांश्च न दग्धुं शक्नोति, न हि तत्र तस्याग्नेर्गतिरस्ति । यथा पञ्जरस्थं शुकपक्षिणं श्येन: प्रहर्तु समर्थो नार्हः पञ्जरस्थत्वात् । तथैव यस्य भक्तस्य सर्वसमर्थशाली स्वामी यदारक्षकोऽस्ति तदा स भक्त: सर्वथा निर्भयो भवति । न हि कालात् कलेश्च विभेति । सत्यं सर्वदा सत्यमेव भवति ।
न चासत्यसमतामुपैति । न च सत्यं दोषोपहतं जायते । अत: सत्यावलम्बिनः सत्यस्वरूपं परमात्मानं प्राप्नुवन्ति । असत्यवादिनस्तु संसारे पीड्यन्ते यत: परमात्मा सत्यस्वरूपः । अत: सर्वदा सत्यमेवाचरेत् ।
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उक्तं हि भागवते -
निमेषादिवत्सरान्तो महीयांस्त्वं त्वेशानं क्षेमधाम प्रपद्ये-
मो मृत्युव्यालभीत: पलायन् लोकान् सर्वान् निर्भयं नाध्यगच्छत्॥
त्वत्पादाब्जं प्राप्य यदृच्छयाद्य स्वस्थः शेते मृत्युरस्मादपैति॥
सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्ययोनि निहितं च सत्ये
सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः ।
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मुझे महान् से महान् उस परमात्मा का पूर्ण विश्वास है कि वह मेरी अवश्य कलियुग के दोषों से रक्षा करेंगे । मेरा स्वामी सर्वसमर्थ है अतः मैं कलियुग से भयभीत नहीं होता । वह तो संसार से पार करने वाला है अतः उसके आगे बेचारे कलियुग का क्या बल चल सकता हैं ?
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जैसे वन की आग समुद्र में रहने वाले मत्स्य और कच्छप आदि जीवों को नहीं जला सकती कारण कि वह समुद्र में मध्य जल में नहीं जा सकती, क्योंकि समुद्र में जाते ही वह स्वयं ही नष्ट हो जायेगी । जैसे पिंजरें में स्थित शुक पक्षी का बाज कुछ नहीं कर सकता क्योंकि वह पिंजरें में सुरक्षित है ।
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इसी प्रकार जिस भक्त की रक्षा करने वाला सर्वसमर्थ परमात्मा है वह भक्त मृत्यु तथा कलियुग से कभी नहीं डरता किन्तु निर्भय रहता है । सत्य सदा सत्य ही है, असत्य कभी सत्य की तुलना नहीं कर सकता और सत्य कभी किसी भी प्रकार के दोषों से दूषित भी नहीं हो सकता ।
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अतः सत्य परमात्मा का सहारा लेने वाले भक्त सत्य परमात्मा को प्राप्त हो जाते हैं । अतः उनको भय किसी का भी नहीं होता और असत्यवादी असत्य के कारण संसार में गिरते रहते हैं । परमात्मा ही सत्यस्वरूप हैं । अतः सत्य बोलते हुए सत्य का ही अवलम्बन ग्रहण करो ।
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भागवत में लिखा है कि –
संसार के सहायक प्रभो ! निमेष से लेकर वर्ष-पर्यन्त अनेक विभागों में जो विभक्त काल है, जिसकी चेष्टा से यह संसार चेष्टित हो रहा है और जिसकी कोई सीमा नहीं, वह आपकी लीलामात्र है । हे प्रभो ! यह जीव मृत्युग्रस्त हो रहा है इस मृत्युरूप करालकाल से भयभीत होकर संपूर्ण लोकों में भटकता रहता है, परन्तु इसे कभी भी ऐसा स्थान नहीं मिला, जहां यह निर्भय होकर रह सके ।
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आज बड़े भाग्य से आपके चरणारविन्दों की शरण मिली है जहां यह निर्भय होकर सुख की नींद सो सके । औरों की तो बात ही क्या है, स्वयं मृत्यु भी आपसे भयभीत होकर भाग गई है । हे प्रभौ ! आप सत्य संकल्प वाले हैं सत्य ही आपकी प्राप्ति का मुख्य साधन है ।
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सृष्टि के पहले, पश्चात्, प्रलयकाल में तथा संसार की स्थिति के समय आप ही सत्यरूप से रहते हैं । पृथ्वी आदि पाँचों भूतों के आप ही कारण हैं तथा आप ही अन्तर्यामीरूप से विराजते हैं । आप इस दृश्यमान जगत् के परमार्थ स्वरूप हैं । आप तो सत्यस्वरूप हैं । हम आपकी शरण में आये हैं । आप ही सत्य के प्रवर्तक हैं ।
(क्रमशः)

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