गुरुवार, 12 मई 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ११*

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*तज काम क्रोध मोह माया, राम राम करणा ।*
*जब लग जीव प्राण पिंड, दादू गहि शरणा ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. १४४)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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११ संत-शिकारी । त्रिताल
वधिक१ विवेकी प्राणि है, सत साधु शिकारी ।
ज्ञान बाण कर कमल में, ध्वनि धनुष हि धारी ॥टेक॥
आखेट वृत्ति आतम लई, दिल दया सु लोपी ।
वपु वसुधा नौ खण्ड परि, बुधि बावरी३ रोपी४ ॥१॥
बैठे मूल सु मारने, पारधि परि५ प्राणा ।
पंच पचीसौं मृगला, लाये लुक६ बाणा ॥२॥
अंग अहेड़ी आकरे७, उर अवनि चढ़ाई ।
मार हि स्यावज८ शोधि सब, कुल९ कर्म कसाई ॥३॥
ऐसे दुष्ट सु उद्धरै, तन मन गुण द्रोही ।
जन रज्जब कहै रामजी, सो पावे मोही ॥४॥११॥
संत व्याध के समान शिकारी है यह बता रहे हैं -
✦ विवेकी प्राणी सच्चे संत व्याध१ के समान शिकारी हैं । उनने ज्ञान रूप बाण और नाम ध्वनि रूप धनुष मनोवृत्ति रूप कर कमलों में धारण कर रक्खे हैं ।
✦ आत्माकार वृत्ति रूप शिकार२ वृत्ति अपना कर हृदय की दया को नष्ट कर दी है । शरीर रूप पृथ्वी के नौ द्वार रूप नौं खण्डों पर साधु रूप व्याध३ ने शिकार खोजने के लिये अपनी बुद्धि लगाई४ है....
✦ और यह शिकार के कार्य में परिपूर्ण५ प्राणी अपने मूल अज्ञान को भली भांति नष्ट करने के लिये बैठा है । पंच ज्ञानेन्द्रिय और पचीस प्रकृति रूप मृगों के छिप६ कर अर्थात प्रभु का आश्रय लेकर बाण लगाये जा रहा है ।
✦ इस तेजस्वी७ शरीर वाले व्याध ने हृदय रूप पृथ्वी पर चढाई की है और काम-क्रोधादि सभी शिकार८ को खोज कर के मार रहा है । संपूर्ण कर्मों को भी नष्ट करने के लिये कसाई के समान कटि बद्ध है ।
✦ ऐसे दुष्टों का ही भली भांति उद्धार होता है । रामजी कहते हैं – “जो तन और मन के दुर्गुणों से बैर करता है वही मुझे प्राप्त करता है ।”
(क्रमशः)

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