मंगलवार, 10 मई 2022

*वात्सल्य भाव का उद्रेक*

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*दादू चंदन बावना, बसै बटाऊ आइ ।*
*सुखदाई शीतल किये, तीनों ताप नसाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निगुणा का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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रात को श्रीरामकृष्ण जरा सी सूजी की खीर और दो-एक पूड़ियाँ खाते हैं । उन्होंने रामलाल से पूछा, 'क्या सूजी है ?’
गाना दो-एक लाइन लिखकर मणि ने लिखना बन्द कर दिया ।
श्रीरामकृष्ण जमीन पर बिछे हुए आसन पर बैठकर सूजी की खीर खा रहे हैं ।
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भोजन करके आप छोटी खाट पर बैठे । मास्टर खाट की बगल में तख्त पर बैठे हुए श्रीरामकृष्ण से बातचीत कर रहे हैं । नारायण की बात करते हुए श्रीरामकृष्ण को भावावेश हो रहा है ।
श्रीरामकृष्ण - आज नारायण को मैंने देखा ।
मास्टर - जी हाँ, आँखे डबडबाई हुई थी । उसका मुँह देखकर रुलाई आती थी ।
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श्रीरामकृष्ण - उसे देखकर वात्सल्य भाव का उद्रेक होता है । यहाँ आता है, इसीलिए घरवाले उसे मारते हैं । उसकी ओर से कहनेवाला कोई नहीं है ।
मास्टर - (सहास्य) - हरिपद के घर में पुस्तकें रखकर वह यहाँ भाग आया ।
श्रीरामकृष्ण - यह अच्छा नहीं किया ।
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श्रीरामकृष्ण चुप हैं । कुछ देर बाद बोले –
"देखो, उसमें बड़ी शक्ति है । नहीं तो कीर्तन सुनते हुए मुझे क्या कभी आकर्षित भी कर सकता था ? मुझे कमरे के भीतर आना पड़ा । कीर्तन छोड़कर आना - ऐसा कभी नहीं हुआ ।
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"उससे मैंने भावावेश में पूछा था, उसने एक ही वाक्य में कहा - मैं आनन्द में हूँ । (मास्टर से) तुम उसे कभी कभी कुछ मोल लेकर खिलाया करो - वात्सल्य भाव से ।”
श्रीरामकृष्ण ने फिर तेजचन्द्र की बात निकाली ।
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(मास्टर से) "एक बार उससे पूछना तो सही, एक शब्द में वह मुझे क्या बतलाता है ? – ज्ञानी या कुछ और सुना, तेजचन्द्र अधिक बातचीत नहीं करता । (गोपाल से) देख, तेजचन्द्र से शनि या मंगल के दिन आने के लिए कहना ।"
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श्रीरामकृष्ण जमीन पर बैठे हुए सूजी की खीर खा रहे हैं । पास ही एक दीपदान पर दिया जल रहा है । श्रीरामकृष्ण के पास मास्टर बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण ने पूछा, 'क्या कुछ मिठाई है ?' मास्टर नये गुड़ के सन्देश ले आये थे । रामलाल ने कहा, ताक पर सन्देश रखे हुए हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - कहाँ है ? जरा ले आओ ।
मास्टर फुर्ती से उठकर ताक पर खोजने लगे । वहाँ सन्देश न थे । भक्तों की सेवा में गये होंगे । मास्टर संकुचित होकर श्रीरामकृष्ण के पास आकर बैठे । श्रीरामकृष्ण बातचीत कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - अच्छा, अबकी बार अगर तुम्हारे स्कूल में जाकर देखूँ –
मास्टर ने सोचा, ये नारायण को देखने के लिए स्कूल जाने की बात कह रहे हैं । उन्होंने कहा, हमारे घर में चलकर बैठिये तो भी काम हो जायेगा ।
श्रीरामकृष्ण - एक इच्छा है । वह यह कि वहाँ और कोई लड़का उस तरह का है या नहीं, जरा देखूँ चलकर ।
मास्टर - आप अवश्य चलिये । दूसरे आदमी देखने जाया करते हैं, उसी तरह आप भी जाइयेगा ।
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श्रीरामकृष्ण भोजन करके छोटी खाट पर बैठे । इस बीच में मास्टर और गोपाल ने बरामदे में बैठकर भोजन किया - रोटी और दाल । उन लोगों ने नौबतखाने में सोने का निश्चय किया ।
भोजन करके मास्टर श्रीरामकृष्ण के पाँवपोश पर आकर बैठे ।
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - नौबतखाने में हंडियाँ-बर्तन न रखे हों, यहाँ सोओगे – इस कमरे में ?
मास्टर - जी हाँ ।
(क्रमशः)

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