बुधवार, 18 मई 2022

*चाहि नहीं द्विज देहु लुटाई*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*राम रसिक वांछै नहीं, परम पदारथ चार ।*
*अठसिधि नव निधि का करै, राता सिरजनहार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*दे तन प्राण धनादिक पावत,*
*आन हु बात न चाहत भाई ।*
*साह तुला तुलि बाँटत है धन,*
*ले सु गये सब नाम न जाई ॥*
*लेन खिनावत फेरि दिये युग,*
*तीसर के चलि साथ भनाई१ ।*
*लीजिये हाथ कछू हमरो भल,*
*चाहि नहीं द्विज देहु लुटाई ॥२२६॥*
नामदेव ने कहा – भाइयो ! छान छाने वाला रूपये पैसे लेने वाला नहीं है । उसे तो जो पहले - तन, मन, प्राण और धनादि देता है, वही उसे प्राप्त करता है । अन्य बात वह कुछ भी नहीं चाहता है ।
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पण्ढरपुर में एक धनी सेठ ने अपने बराबर सुवर्ण तोलकर तुलादान किया था और सभी भक्तों आदि को दिया था किन्तु एक नामदेवजी ही रह गये थे ।
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कारण – वे जाते ही नहीं थे । सेठ ने आपके पास सादर बुलाने को भेजा तब आपने दो को तो यह कहकर लौटा दिया कि मुझे कुछ नहीं चाहिये । तीसरी बार अति प्रार्थना करके बुलाया, तब आप जाकर बोले – हे बड़भागी सेठ ! कहो क्या कहते हो ?
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उसने प्रार्थना की – आप कृपा करके इसमें से कुछ सुवर्ण अपने हाथ में लेकर अंगीकार कीजिये । जिससे मेरा भला हो । आपने कहा – तुमने सबको दिया है, इससे तुम्हारा तो भला ही हुआ है । मुझे तो चाहिये नहीं, ब्राह्मणों को लुटा दीजिये ।
(क्रमशः)

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