बुधवार, 18 मई 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ १०९/११२*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ १०९/११२*
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उपज्या नहिं अरु सकल है, तेज पुंज अबिगत ।
कहि जगजीवन देह बिदेह, दत मत गोरख रत्त२ ॥१०९॥
(२. दत्त मत गोरख रत्त-सिद्धयोगी दत्तात्रेय द्वारा बतायी गयी साधना में गोरखनाथ निरन्तर लगे हुए हैं)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जन्म न लेकर भी जो सब कुछ है । जिसका तेज पुंज जाना ही नहीं जा सकता । सिद्ध योगी भी उन्हें पाने की इच्छा में भगवान दत्तात्रेय व गोरखनाथ जी द्वारा बताये मार्ग पर रत है ।
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उपज्या नहिं अरु सकल है, उपज्या कह्या अकास ।
सुइच्छा३ सब सबद सौ, सु कहि जगजीवनदास ॥११०॥
(३. सुइच्छा-स्वेच्छा)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो उपजा ही नहीं वह सब है और उसे आकाश तक उपजा हुआ कहते हैं । उन्होंने अपनी इच्छा से ही ज्ञान के शब्द कहे हैं ।
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उपज्या नहिं अरु सकल है, सो पिव सम्रथ लार ।
कहि जगजीवन देह धरि, उपज्या दास अवतार ॥१११॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जन्मा नहीं पर सर्वत्र है वह समर्थ प्रभु सर्वत्र है सब उनके पीछे हैं । संत कहते हैं कि जब वे देह धारण कर अवतार लेते हैं तो प्रभु दास हो संतो व आर्त जन का उद्धार ही करते हैं ।
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उपज्या नहिं अरु सकल है, आंख उघाड़ी१ जोइ ।
कहि जगजीवन आदि हरि, अंत मद्धि निज सोइ ॥११२॥
(१. आंख उघाड़ी जोइ - आँखे खो कर देखो)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आँख खोलकर देखो वह न जन्म कर भी सर्वत्र है । संत कहते हैं कि आदि मध्य व अंत तक स्वयं प्रभु ही है ।
(क्रमशः)

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