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*दादू राम नाम में पैस कर, राम नाम ल्यौ जाइ ।*
*यहु इंकत त्रिय लोक में, अनत काहे को जाइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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९ नाम द्वारा मनोलय । दादरा
संतों मन मोहन मिलि नावै१,
ज्यों विलय बधूला आंधी मांहीं, निकस न भरमण पावै ॥टेक॥
ज्यों वृक्ष बाज परसि वपू२ वह्नि३, वसुधा मांहिं समावै ।
उदय अंकूर कौन विधि ताको, कैसे अंग४ दिखावै ॥१॥
स्वाति बूंद जो सीप समानी, सो फिर गगन न आवै ।
अलि५ चलि कमल केतकी बींधै, अन्य पहुप नहिं धावै ॥२॥
अमलवेत सूई जो पैठी, सो बागै६ न सिवावै ।
रज्जब रहै राम में मन यूं, समरथ ठौर सु भावै७ ॥३॥९॥
नाम चिन्तन द्वारा प्रभु में मन का लय होना बता रहे हैं -
✦ संतों ! नाम१ चिन्तन द्वारा मन विश्व विमोहन प्रभु में ऐसे मिल जाते हैं, जैसे बधूला आँधी में मिल जाने पर उससे निकल कर अलग भ्रमण नहीं कर पाता ।
✦ जैसे वृक्ष के बीज का आकार२ अग्नि३ से मिलकर अर्थात भुनकर पृथ्वी में मिलता है तब उसका अंकुर किस प्रकार निकलेगा, और पुन: पूर्ववत अपना आकार४ कैसे दिखायेगा ?
✦ जो स्वाति बिन्दु सीप में प्रवेश कर जाती है वह पुन: आकाश में नहीं जाती । भ्रमर५ कमल से चलकर केतकी की सुगंध से विद्ध होता है तब पुन: दौड़कर दूसरे पुष्प पर नहीं जाता ।
✦ जो सुई अमलवेत औषधि में प्रवेश करती है, वह वस्त्र६ सिलाई के काम में नहीं आती उसी में गलकर लय हो जाती है । ऐसे ही नाम चिन्तन द्वारा मन राम में लय हो जाता है उसे सर्व समर्थ प्रभु रूप स्थान प्रिय-लगता७ है । प्रभु को छोड़कर वह पुन: सांसारिक विषयों में नहीं आता ।
(क्रमशः)

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