शनिवार, 7 मई 2022

*भक्तों के साथ संकीर्तनानन्द*

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*सब सुख मेरे साँइयाँ, मँगल अति आनन्द ।*
*दादू सज्जन सब मिले, जब भेंटे परमानन्द ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(४)भक्तों के साथ संकीर्तनानन्द*
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बहुत से भक्त आये हुए है, श्रीयुत विजय गोस्वामी, महिमाचरण, नारायण, अधर, मास्टर, छोटे गोपाल आदि । राखाल, बलराम इस समय वृन्दावन में है । दिन के ३-४ बजे का समय होगा । श्रीरामकृष्ण बरामदे में कीर्तन सुन रहे हैं, पास में नारायण आकर बैठे । चारों ओर दूसरे भक्त बैठे हुए हैं ।
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इसी समय अधर आये । अधर को देखकर श्रीरामकृष्ण में कुछ उद्दीपना हो गयी । अधर के प्रणाम करके आसन ग्रहण करने पर श्रीरामकृष्ण ने उन्हें और निकट बैठने के लिए इशारा किया ।
कीर्तनियों ने कीर्तन समाप्त किया । सभा उठ गयी । बगीचे में भक्तगण इधर-इधर टहल रहे हैं । कोई कोई काली और राधाकान्तजी की आरती देखने के लिए गये ।
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सन्ध्या के बाद श्रीरामकृष्ण के कमरे में भक्तगण फिर आये । उनके कमरे में कीर्तन का आयोजन फिर होने लगा । उनमें खूब उत्साह है । कहते हैं, एक बत्ती इधर भी देना । दो बत्तियों जला दी गयीं, खूब रोशनी होने लगी । श्रीरामकृष्ण विजय से कह रहे हैं - 'तुम ऐसी जगह क्यों बैठे ? इधर आकर बैठो ।'
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अब की बार कीर्तन खूब जमा । श्रीरामकृष्ण मस्त होकर नृत्य कर रहे हैं । भक्तगण उन्हें घेर-घेरकर खूब नाच रहे हैं । विजय नाचते हुए दिगम्बर हो गये । होश कुछ भी नहीं हैं ।
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कीर्तन के बाद विजय चाभी खोज रहे हैं । कहीं गिर गयी है । श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, "अब भी एक बार 'बोल वृन्दावन बिहारी की जय' होनी चाहिए !" यह कहकर हँस रहे हैं, विजय से और भी कह रहे हैं, "अब यह सब क्यों ?" (अर्थात् अब चाभी के साथ क्यों सम्बन्ध रखते हो ?)
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किशोरी प्रणाम करके बिदाई ले रहे हैं । श्रीरामकृष्ण स्नेहार्द्र हो उनकी देह पर हाथ फेरने लगे और बोले, 'अच्छा आओ ।' बातों में करुणा मिली हुई है । कुछ देर बाद मणि और गोपाल ने आकर प्रणाम किया - वे लोग भी चलने वाले हैं । श्रीरामकृष्ण की करुणापूर्ण बातें ! कहा, कल सुबह को उठकर जाना, कहीं ओस लगकर तबीयत न खराब हो जाय ।
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मणि और गोपाल फिर नहीं गये । वे आज रात को यहीं रहेंगे । वे तथा और भी दो-एक भक्त जमीन पर बैठे हुए हैं । कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण श्रीयुत राम चक्रवर्ती से कह रहे हैं, "राम, यहाँ एक पाँवपोश और था, क्या हो गया ?''
श्रीरामकृष्ण को दिन भर अवकाश नहीं मिला कि जरा विश्राम करते । भक्तों को छोड़कर जाते भी कहाँ ? अब एक बार बाहर की ओर जाने लगे । कमरे में लौटकर उन्होंने देखा, मणि रामलाल से सुनकर गाना लिख रहे हैं । श्रीरामकृष्ण ने मणि से पूछा, 'क्या लिखते हो ?' गाने का नाम सुनकर कहा, यह तो बहुत बड़ा गाना है ।
(क्रमशः)

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