शनिवार, 7 मई 2022

शब्दस्कन्ध ~ पद #.१९२

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१९२)*
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*१९२. करणी बिना कथनी । प्रतिपाल*
*बातैं बाद जाहिंगी भइये, तुम जनि जानों बातनि पइये ॥टेक॥*
*जब लग अपना आप न जानै, तब लग कथनी काची ।*
*आपा जान सांई को जानै, तब कथनी सब साची ॥१॥*
*करनी बिना कंत नहीं पावै, कहे सुने का होई ।*
*जैसी कहै करै जे तैसी, पावैगा जन सोई ॥२॥*
*बातनि हीं जे निर्मल होवे, तो काहे को कस लीजे ।*
*सोना अग्नि दहै दस बारा, तब यहु प्रान पतीजे ॥३॥*
*यौं हम जाना मन पतियाना, करनी कठिन अपारा ।*
*दादू तन का आपा जारे, तो तिरत न लागे बारा ॥४॥*
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भा०दी० - नहि कर्तव्यं कर्म बिना केवलं तद्वार्तामात्रेण केनाऽपि प्रभुः प्राप्यते । किन्त्वायुष्यं व्यर्थमेव गम्यते । यावद्धि अहंकारो न निवर्तते तावद् भगवच्चर्चाऽपि दम्भमात्रम् । अतस्त्वमहंकारं परित्यज्य स्वात्मानं परिचीय परमात्मानं परिचिनुहि । तदैव तच्चर्चाऽपि सार्थक्यं यास्यति । यतो हि प्रभुप्राप्तौ सत्कर्त्तव्यमेव प्रधानम् । न तु कथनमात्रेण श्रवणमात्रेण कस्यचित्सिद्धिर्दृष्टा श्रुता वा । किन्तु तदनुकूलसाधनानुष्ठानेनैव । यदि केवलं साधनचर्चयैव भगवत्प्राप्तिर्भवेत्तर्हि साधनानुष्ठानं व्यर्थमेव स्यात् । कश्च साधानानुष्ठानजन्यं कष्टं सहेत? यथाऽग्नौ दशबारं सुवर्णं सुवर्णकारेण ताप्यते तदैव तद्शुद्धं जायते । एवं साधनानुष्ठानैरेवाहंकारनिवृत्तिर्नान्यथा । यदि च कस्यचिदहंकारो निवर्तेत तर्हि मोक्षे स्वल्पोऽपि विलम्बो न भवेत् । किन्तु सत्कर्तव्यानुष्ठानमतिकठिनं, तत्कथनं तु सरलम् । अतो यादृशं वदेत्तथैवाचरेदितिभावः ॥
उक्तं पद्मपु०
वर्णाश्रमा चारवता पुरुषेण परपुमान्
विष्णुराराध्यते पन्था: सोऽयं तत्तोषकारणम् ।
कठे० -
नाविरतो दुश्चरितान्नाशान्तो नासमाहितः ।
नाशान्तमानसो वाऽपि प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात् ॥
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कर्तव्य कर्म के किये बिना केवल परमात्मा की बात करने से परमात्मा नहीं मिलता । जब तक अपना अहंकार नहीं जाता तब तक के लिए चर्चा करना भी एक दम्भ सा हो जाता है । इसलिए पहले अपने अहंकार को त्यागकर अपने स्वरूप को पहचानो कि मैं कौन हूँ? उसके बाद में परमात्मा को पहचानो तबतो उसको बातचीत करना भी सार्थक हो सकता है, क्योंकि प्रभुप्राप्ति में कर्तव्य की ही प्रधानता है ।
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केवल कथनमात्र से श्रवणमात्र से किसी को प्रभु प्राप्त करते नहीं देखा । यदि बात से ही प्रभु मिल जाय तो फिर साधन का अनुष्ठान व्यर्थ हो जाय । कौन साधन के अनुष्ठान होने वाले कष्ट को सहे ? जैसे दसबार अग्नि में तपाने से ही सोना शुद्ध होता है । इसी तरह साधन में अनुष्ठान से ही अहंकार की निवृत्ति होती है । यदि किसी का अहंकार निवृत्त हो जाय तो फिर मोक्ष में कोई देरी ही नहीं होती । किन्तु कहना सरल है और करना बड़ा कठिन है । इसलिए जो जैसा कहता है वैसा ही करना चाहिये ।
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पद्मपुराण में लिखा है कि –
वर्ण और आश्रमों के आचार का पालन करता हुआ मनुष्य भगवान् का ध्यान करें, यह ही उसकी प्रसन्नता का हेतु है । जो बुरे आचरण से निवृत्त नहीं होता, वह सुक्ष बुद्धि के द्वारा भी उसको प्राप्त नहीं कर सकता और न वह प्राप्त कर सकता जो अशान्त है । जिसके मन इन्द्रिय संगत नहीं, वह भी उसको प्राप्त नहीं कर सकता । वह भी प्राप्त नहीं कर सकता जिसका मन अशान्त हो ।
(क्रमशः)

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