🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*आत्म मांही राम है, पूजा ताकी होइ ।*
*सेवा वंदन आरती, साध करैं सब कोइ ॥*
===================
*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
८. सूक्ष्म सेवा पूजा । कहरवा
सूक्ष्म सेवा शरीर में, कोई गुरु मुख जाने ।
मन मृतक१ तन पैठि२ करि, पति३ पूजा ठाने४ ॥टेक॥
पछिम५ पाट६ कहु को रचे७, सत सेवा साजे८ ।
विविध भांति बहु बंदगी, बिच ब्रह्म विचारे ॥१॥
साँच शील जल सांपड़े९, शुचि संयम साँचा ।
व्रत उनमनी१० अह निशा, मन मनसा वाचा ॥२॥
पाती पंच चढाइले, सत सुकृत सुगंधा ।
धूप ध्यान ज्ञान हि दिया, यहु आरंभ धंधा१७ ॥३॥
घंटा घट रट राम की, तालि तत्त्व ताला ।
वाणी वेण मृदंग मत११, सब शब्द रसाला ॥४॥
सर्वस्व ले आगे धरे, भजि भोग सु लागे ।
युग युग जगपति आरती, जीव जूठाणि१२ मांगे ॥५॥
दीन लीन साँचे मतै१३, डरके डंडोता ।
भयभीत भयानक भक्त सो, निज निर्गुण नौता१४ ॥६॥
सारी१५ सेव शरीर में, सब करै बखाना ।
रज्जब राम रंजाय१६ यूं, जन ज्योति समाना ॥७॥८॥
आन्तर सूक्ष्म सेवा पूजा की विधि तथा सामग्री बता रहे हैं -
✦ शरीर के भीतर जो सुक्ष्म सेवा पूजा होती है, उसे कोई गुरु की आज्ञा में रहने वाला साधक ही गुरु के मुख से जान पाता है । इसको करने वाला साधक मन को मार१ कर शरीर के हृदय स्थान में प्रवेश२ करके प्रभु३ की पूजा करता४ है ।
✦ सुषुम्ना के पश्चिम५ मार्ग को खोल६ कर मेरु दंड की ग्रंथियों को भेदन६ करते हुये इस सत्य सेवा को कहो कौन सजाकर८ करता७ है ? अर्थात ऐसी सेवा पूजा तो कोई बिरला ही करता है । शरीर के भीतर साक्षी रूप से जो ब्रह्म बिराजते हैं, उसकी सेवा पूजा बहुत प्रकार से और विविध भांति की सामग्री से होती है ।
✦ प्रथम पूजक सच्चे शीलरूप जल से स्नान९ करे अर्थात ब्रह्मचर्य से रहे । सत्य रूप संयम से पवित्र होवे, दिन रात मन, बुद्धि और वाणी से समाधि१० रूप व्रत करे अर्थात मन आदि को ब्रह्म परायण में रखे फिर पंच ज्ञानेन्द्रियों का तुलसी पत्र प्रभु को चढावे अर्थात उन्हें विषयों से हटाकर प्रभु परायण करे ।
✦ सच्चा सुकृत रूप सुगंध लगावे अर्थात दंभ रहित सुकृत करे ध्यान का धूप जलावे अर्थात ध्यान करे । ज्ञान का दीपक प्रज्वलित करे, यही पूजा करने रूप कार्य१७ के उपक्रम हैं ।
✦ शरीर में अनाहत् नाद रूप घंटा बजावे । राम नाम की रट रूप ताली से तत्त्व रूप ताला खोले अर्थात नाम और जप ध्वनि कर के तत्व ज्ञान पूर्ण स्तुति करे । वाणी रूप वंशी, विचार११ रूप मृदंग बजाते हुये रस पूर्ण शब्दों का गान करे अर्थात विचार पूर्वक वाणी से शब्द बोले ।
✦ फिर अपना सर्वस्व प्रभु के आगे समर्पण करे । भजन रूप भोजन लगावे अर्थात भजन करे । इस प्रकार की आरती प्रति युग में संतों ने की है अत: साधक जीव उक्त प्रकार की आरती करके कृपा प्रसाद१२ की याचना करे ।
✦ नम्र भाव से, सच्चे विचार१३ द्वारा अपनी बुद्धि को प्रभु में लीन करके भय रूप दंडवत् करे अर्थात प्रभु से डरता रहे । दुर्जनों के लिये भयानक प्रभु के भय से जो भक्त डरता रहता है, वह निज स्वरूप निर्गुण ब्रह्म की ओर नित्य नूतन१४ ढंग से बढता रहता है ।
✦ प्रभु की संपूर्ण१५ सेवा पूजा उक्त प्रकार शरीर से ही करना चाहिये । सब संत ऐसा कथन करते हैं । इस प्रकार की सेवा पूजा से भक्त प्रभु को तृप्त१६ करके ज्ञान ज्योति स्वरूप ब्रह्म में ही समा जाता है । पुन: जन्मादि संसार को प्राप्त नहीं होता ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें