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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ १२१/१२४*
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निराकार उपज्या नहीं, उपज्या सब आकार ।
कहि जगजीवन साध सिध, प्रेम पिवै पिव लार४ ॥१२१॥
(४. पिव लार-स्वामी के साथ)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो भी जन्मा है वह आकार युक्त है । और जो निराकार है वह अजन्मा है । अतः सभी सिद्ध साधक अपने प्रियतम प्रभु के सानिध्य में प्रेमानंद पान करते हैं ।
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निराकार उपज्या नहीं, अरु उपज्या सब आंन ।
कहि जगजीवन अकल हरि, अगम कहै गुरग्यांन ॥१२२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो निराकार है वह जन्मा ही नहीं अन्य सब जन्मते हैं । उन निराकार परमात्मा को निरंतर व अगम कहा जाता है ।
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निराकार उपज्या नहीं, सब मंहि सब सों भिंन ।
कहि जगजीवन हेत हरि, चित मंहि राखै जिंन ॥१२३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो निराकार ब्रह्म है वह तो जन्मता ही नहीं सबसे भिन्न हैं । वे उन्हीं को मिलते हैं जो चित्त में परमात्मा को रखते हैं ।
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अबिगत अकल अगाध हरि, अगम अखंडित रांम ।
कहि जगजीवन नांम गुन, ना तिहिं देह न नांम ॥१२४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वे प्रभु अविगत जिनकी गति समझ से परे हो, अकल जो नित्य हो । अगाध जिनकी सीमा न हो, संत कहते हैं कि उनके नाम की महिमा ही श्रेष्ठ है ना तो उनकी कोइ देह है न ही देह का नाम है ।
(क्रमशः)

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