🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू कीड़ा नरक का, राख्या चंदन मांहि ।*
*उलट अपूठा नरक में, चन्दन भावै नांहि ॥*
===================
*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
१९ अज्ञान । त्रिताल
जीव जुदा जगदीश में, सो जानि न जाना ।
अंतर ही अंतर रह्या, माया मन माना ॥टेक॥
ज्यों अक्षर परिचय आँखि ह्वै, पै अर्थ न आवै ।
त्यों प्राण पिंड हि रचे१, पति२ परख३ न पावै ॥१॥
शून्य स्वरूपी राम है, ॐ कार सु आभा४ ।
चित्त चातक अटके तहाँ, वित्त५ बूंद सु लाभा ॥२॥
प्राण पिंड रस पोखया, पीया पंचों भाया ।
रज्जब कीड़े कड़ब के, कण स्वाद न पाया ॥३॥१९॥
जीव के अज्ञान को दिखा रहे हैं –
✦ जो जीव जगदीश्वर में रहकर भी उससे अपने को अलग ही जानता है, वह जानकर भी नहीं जानता अर्थात उक्त प्रकार जानना जानना नहीं है । भीतर रहने पर भी भेद रह गया, कारण मन में माया को ही सुख मान लिया है ।
✦ जैसे नेत्र अक्षर के आकार को तो पहचान जाते हैं किंतु अर्थ तो उसके समझ में नहीं आता । वैसे ही प्राणी शरीर में अनुरक्त१ हो रहा है, प्रभु२ को नहीं पहचान३ पाता ।
✦ राम आकाश के समान है, ॐकार बादल के समान है । जैसे चातक पक्षी स्वाति बिन्दु के लाभार्थ बादलों में अटकता है वैसे ही प्राणियों का चित्त धन५ के लिये ओंकार के सकाम जप में अटक जाता है ।
✦ प्राणी ने मायिक विषय रस पान करके शरीर का पोषण किया है और पंच ज्ञानेन्द्रियों को भी वही प्रिय लगा है जैसे ज्वार आदि की कड़वी के कीड़े को अन्न कण में स्वाद नहीं आता, वैसे ही विषयों के कीट प्राणी की ब्रह्मानन्द नहीं मिलता ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें