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*मूल गहै सो निश्चल बैठा, सुख में रहै समाइ ।*
*डाल पान भ्रमत फिरै, वेदों दिया बहाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(४)पहले विद्या(Science) या पहले ईश्वर ?*
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श्रीरामकृष्ण - (बंकिम के प्रति) कोई कोई समझते हैं कि बिना शास्त्र पढ़े अथवा पुस्तकों का अध्ययन किये ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता । वे सोचते हैं, पहले जगत् के बारे में, जीव के बारे में जानना चाहिए, पहले साइन्स(Science) पढ़ना चाहिए । (सभी हँसे ।) वे कहते हैं, ईश्वर की यह सारी सृष्टि समझे बिना ईश्वर को जाना नहीं जाता । तुम क्या कहते हो ? पहले साइन्स या पहले ईश्वर ?
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बंकिम - जी हाँ, पहले जगत् के बारे में दस बातें जान लेनी चाहिए । थोड़ा इधर का ज्ञान हुए बिना ईश्वर को कैसे जानूँगा ? पहले पुस्तकें पढ़कर कुछ जान लेना चाहिए ।
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श्रीरामकृष्ण - वही तुम लोगों का एक ख्याल है । पहले ईश्वर, उसके बाद सृष्टि । उन्हें प्राप्त करने पर, आवश्यक हो तो सभी जान सकोगे । किसी भी तरह यदु मल्लिक के साथ बातचीत कर सकोगे फिर यदि तुम यह जानना चाहोगे कि उसके कितने मकान हैं, कितने कम्पनी के कागज हैं, कितने बगीचे हैं, तो यह सब भी जान सकोगे ।
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यदु मल्लिक ही खुद सब बता देगा । परन्तु यदि उसके साथ बातचीत न हो, और मकान के अन्दर घुसना चाहोगे, तो दरवान लोग ही घुसने न देंगे । फिर ठीक-ठोक कैसे जानोगे कि उसके कितने मकान है, कितने कम्पनी के कागजात हैं, कितने बगीचे हैं आदि आदि ? उन्हें जान लेने पर सब कुछ जाना जा सकता है । परन्तु फिर मामूली चोजें जानने की इच्छा नहीं रहती ।
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वेद में भी यही बात है । जब तक किसी व्यक्ति को देखा नहीं जाता तब तक उसके गुणों की बातें बतायी जा सकती है; जब वह सामने आ जाता है, उस समय वे सब बातें बन्द हो जाती हैं । लोग उसे ही लेकर मस्त रहते हैं । उसके साथ हो बातचीत करते हुए विभोर हो जाते हैं, उस समय दूसरी बाते नहीं सूझतीं ।
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"पहले ईश्वर की प्राप्ति, उसके बाद सृष्टि या दूसरी बातचीत । वाल्मीकि को राममन्त्र का जप करने को कहा गया, परन्तु उनसे कहा गया, 'मरा' 'मरा' का जप करो । 'म' अर्थात् ईश्वर और 'रा' अर्थात् जगत् । पहले ईश्वर, उसके बाद जगत्, एक को जानने पर सभी जाना जा सकता है । एक के बाद यदि पचास शून्य रहे तो संख्या बढ़ जाती हैं । १ को मिटा देने से कुछ भी नहीं रहता । एक को लेकर ही अनेक है । पहले एक, उसके बाद अनेक; पहले ईश्वर, उसके बाद जीव-जगत् ।
(क्रमशः)

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