सोमवार, 23 मई 2022

शब्दस्कन्ध ~ पद #.१९९

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१९९)*
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*१९९. संत समागम प्रार्थना । दादरा*
*निरंजन नाम के रस माते, कोई पूरे प्राणी राते ॥टेक॥*
*सदा सनेही राम के, सोई जन साचे ।*
*तुम बिन और न जानहीं, रंग तेरे ही राचे ॥१॥*
*आन न भावै एक तूँ , सति साधु सोई ।*
*प्रेम पियासे पीव के, ऐसा जन कोई ॥२॥*
*तुम हीं जीवन उर रहे, आनन्द अनुरागी ।*
*प्रेम मगन पीव प्रितड़ी, लै तुम सौं लागी ॥३॥*
*जे जन तेरे रंग रंगे, दूजा रंग नांही ।*
*जन्म सुफल कर लीजिये, दादू उन मांहीं ॥४॥*
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भा०दी० - यः कोऽपि पूर्णरूपेण निरञ्जननिराकाररामस्य नामरूपचिन्तनेऽनुरक्तो भवेत् । स हि रामप्रिय: सत्य: साधुः यो भगवन्तं विना किमपि सत्यं न स्वीकरोति । तव भक्तिरसे नितरां मग्नोऽस्ति । यस्मै भगवन्तं विना नान्यत्किञ्चिद् रोचते, स एव हि सत्पदं गच्छति । यस्यान्त: करणमिन्द्रियाणि च प्रभुप्रेमपिपासितानि सन्ति । विरल एव तादृशो भक्तो यस्य प्रियतमात् प्रभोरन्यत्र मनोवृत्तिर्नगच्छति । तेषां हृदये नान्यस्य प्रेमोदेति । अतो हे भगवन् त्वां संप्रार्थये यत्सतां संगेन स्वं जीवनं सफलीकर्तुमिच्छामीति ।
श्रीभागवते ::
अहो अनन्त - दासानां महत्त्वं दृष्टमद्य मे ।
कृतागतसोऽपि यद् राजन् मङ्गलानि समीहते ॥
दुष्करः को नु साधूनां दुस्त्यजो वा महात्मनाम् ।
यैः संगृहीतो भगवान् सात्वतामृषभो हरिः ॥
यन्नामश्रुतिमात्रेण पुमान् भवति निर्मल: ।
तस्य तीर्थापदः किं वा दासानामवशिष्यते ॥
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वह ही सच्चा साधु कहलाता है कि जो पूर्णरूपेण निरन्जन राम के नाम चिन्तन में अनुरक्त होता हुआ पागल रहता है । जिसको राम ही प्यारे हैं । राम के अलावा किसी को सत्य नहीं मानता तथा भगवान् के भक्ति रंग में रंगा हुआ है । जिसको राम के अलावा कोई अच्छा नहीं लगता किन्तु राम ही प्यारे लगते हैं । वह ही सच्चा साधु है । जिसका मन और इन्द्रियाँ प्रभु-प्रेम की प्यासी रहती हैं । प्रियतम प्रभु के सिवा जिसका मन और इन्द्रियों की वृत्ति कहीं भी नहीं जाती । जिसके हृदय में अन्य का प्रेम नहीं समा सकता वह ही सच्चा साधु होता है । हे भगवन् ! मैं आप से प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे सच्चे साधु की संगति से मैं अपना जीवन सफल बनाऊं ।
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भागवत में लिखा है – दुर्वासाजी अम्बरीष से कह रहे हैं कि – धन्य है, आज मैंने भगवान् के प्रेमी भक्तों का महत्त्व देखा । हे राजन् ! मैंने आपका अपराध किया फिर भी आप मेरे लिये मंगलकामना ही कर रहे हैं । जिन्होंने भक्तों के परमाराध्य भगवान् श्री हरि को दृढ़ प्रेमभाव से पकड़ लिया, उन साधु पुरुषों के लिये कौन सा कार्य कठिन है । जिनका हृदय उदार है वे महात्मा भला किस वस्तु का परित्याग नहीं कर सकते? जिनके मंगलमय नामों के श्रवणमात्र से जीव निर्मल हो जाता है, उन्हीं तीर्थपाद भगवान् के चरणकमलों के जो दास हैं उनके लिये कौन सा कर्तव्य शेष रह जाता है ?
(क्रमशः)

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