बुधवार, 4 मई 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ८५/८८*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ८५/८८*
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जिस जांणैं सब जांणिये, सोई जांणैं जांण ।
कहि जगजीवन रांम हरि, अबिगत अलख पिछांण ॥८५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिसके जानने से सब समझ आ जाते हैं । उसे ही जाना हुआ जानो संत कहते हैं कि राम, हरि ये दो शब्द ही जो अविगत व अलख है जानने देखने से परे है को ही पहचानने का प्रयास करें ये ही प्रभु का स्वरुप है ।
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जे जाण्यां सूँ जांण६ ह्वै, एक न जांण्यां नांम ।
तो कहि जगजीवन सब गया, जे चित रह्या न रांम ॥८६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिसके जानने से सब जाना हुआ जाना जाये उसी एक नाम को यदि नहीं जाना तो सब व्यर्थ है यदि चित में राम नहीं रहा तो अन्य का रहना बेकार है ।
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संस्क्रति प्राक्रिति सबद सब, कुंज७ कतेब कुरांन ।
कहि जगजीवन नांम बिन, ए सब थोथे बांन ॥८७॥
(७. कुंज = वेदसंहिता)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि संस्कृत व प्राकृत भाषा के सारे शब्द सभी वेद कुरान किताब ये सब बिना राम नाम के खोखले शर है ।
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रांम नांम जिस पाठ मंहि, रांम नांम जिस ग्यांन ।
कहि जगजीवन सोई ग्राहिय१, अनंत परिहरि दूजी आंन ॥८८॥
(१. ग्राहिय-ग्राह्य = ग्रहण करने योग्य)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिस पाठ में राम का नाम है वह ही ग्रहणीय है । शेष सब व्यर्थ है ।
(क्रमशः)

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