शुक्रवार, 6 मई 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ८९/९२*

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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ८९/९२*
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कही सकल करतार भजि, अनंत नांउं उर आंणि ।
कहि जगजीवन अकह हरि, परम पुरिष पहचांणि ॥८९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हर समय ईश्वर का भजन कर उसके अनगिनत नामों को ह्रदय में धारण कर । संतकहते हैं कि उन न कहे जाने वाले जो कहने की सीमा से परे है का भी भजन कर और उस परम पुरुष को पहचान ।
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अक्षर ब्रह्म अगाध हरि, क्षर माया खिर जाइ ।
कहि जगजीवन नांम रटि, रांम तहां ल्यौ लाइ ॥९०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु तो अक्षर ब्रह्म हैं उनका कभी क्षरण नहीं होता और माया क्षरणीय है वह खिर जाती है अतःभजन करें व जहाँ प्रभु है वहां ही लीन रहें ।
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सकल तिरैं सब ऊधरैं२, सब जिव पहुँचैं पार ।
कहि जगजीवन क्रिपा करि, जे प्रगटहु प्राण अधार ॥९१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यदि हमारे प्राण आधार प्रभु प्रकट होकर कृपा करें तो सभी जीवों का उद्धार हो व सभी जीव भव से पार उतरें ।
(२. ऊधरैं=संसारसागर से अपना उद्धार कर लें)
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सकल ग्रंथ साधन कह्या, न कह्या सो नहिं नाद ।
कहि जगजीवन रांम भजि, निरखि बीर लहै स्वाद ॥९२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सभी ग्रंथों में प्रभु प्राप्ति के साधन कहे गये हैं जो नहीं कहा गया है तो नाद है । संत कहते हैं कि हे जीव रामभजन कर और प्रभु दर्शन से आनंदित हो ।
(क्रमशः)

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