शुक्रवार, 6 मई 2022

*राम हि ध्याय सु गाय जिवावत*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*दादू तन मन लाइ कर, सेवा दृढ़ कर लेइ ।*
*ऐसा समर्थ राम है, जे मांगै सो देइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भूप तुरक्क कहै वश साहिब,*
*ध्यो अजमत्त१ रु मोहि मिलावो ।*
*ह्वै अजमत्त भरैं दिन क्यों हम,*
*साधुन को रिझवें उर भावो ॥*
*वा सु प्रभाव बुलाय यहां लग,*
*गाय जीवाय घरां तुम जावो ।*
*राम हि ध्याय सु गाय जिवावत,*
*देख पर्यो पग गांव रखावो ॥२२१॥*
भगवत् कृपा से नामदेवजी की भगवत् प्रीति प्रतीति की महिमा फैलती हुई, मुसलमान बादशाह के पास भी जा पहुँची । उसने आपको बुलाकर कहा – हमने सुना है आपके वश में साहिब है, सो मुझे भी साहिब से मिलाओ और अपनी करामात भी दिखाओ ।
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नामदेव ने कहा – मुझ में करामात होती तो मैं छीपा का काम करके क्यों अपनी जीविका चलाता ? दिन भर जो काम करता हूँ, उससे जो कुछ मिलता है, उसीसे हृदय के भाव पूर्वक संतों की सेवा करके उन्हें प्रसन्न करता हूँ ।
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उन श्रेष्ठ संतों की सेवा के प्रभाव से ही लोगों में मेरी बढ़ाई हो रही है । वह आपके पास भी पहुँच गई है । उसी के प्रभाव से आपने मुझे यहां तक बुलाया है । नामदेवजी की उक्त बात सुनकर बादशाह ने कहा – इस मरी हुई गाय को जीवित करके तुम अपने घर जा सकते हो । बादशाह का हठ देखकर, आपने रामजी का ध्यान करते हुये एक विष्णु पद सप्रेम गान करके, गाय को जीवित कर दिया था ।
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उसका मुख्य अंश है – “दीनानाथ ! दीन ह्वै टेरत, गाय हिं क्यों न जियाओ । आछे सबै अंग हैं याके, मेरे यश हिं बढाओ ।” यह करामात देखकर बादशाह बड़ा प्रसन्न हुआ और चरणों में पड़कर प्रार्थना करने लगा – भगवन् कोई ग्राम संतों की सेवा के लिये स्वीकार करने की कृपा कीजिये ।
(क्रमशः)

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