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*आपा मेट समाइ रहु, दूजा धंधा बाद ।*
*दादू काहे पच मरै, सहजैं सुमिरण साध ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१६ स्मरण विधि । त्रिताल
रे मन ऐसे राम कही जे, मरण उरै१ मर प्राण पतीजे२ ॥टेक॥
जैसे सती सकल तज बोलै, निश्चल राम कहूं नहि डोलै ॥१॥
जो पहले शिर त्यागे, सो रण संग्राम न भागे ॥२॥
मरजीवा मरि समुद्र समाई, सो रज्जब नग निरखै जाई ॥३॥१६॥
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राम स्मरण की विधि बता रहे हैं –
✦ अरे मन ! इस प्रकार राम का स्मरण करना चाहिये । मरणे से पहले१ मर कर अर्थात सब में सम होकर स्मरण कर तब ही प्राणी तेरे स्मरण पर विश्वास२ करेंगे ।
✦ जैसे सती सबको त्याग कर जलने का ही वचन बोलती है । वैसे ही राम के स्वरूप में निश्चल होकर स्मरण करना चाहिये, राम से अन्य में कहीं भी वृत्ति न जानी चाहिये ।
✦ जो वीर पहले ही शिर त्याग कर युद्ध करता है, वह रण भूमी से नहीं भागता । वैसे ही जो साधक पहले ही देहाभिमान छोड़ देता है वह साधन संग्राम से नहीं भागता ।
✦ जैसे मरजीवा अपने को मरा हुआ समझ कर समुद्र में घुसता है, तब नीचे जाकर नग देखता है । वैसे ही जो पहले ही जीवित मृतक होकर स्मरण करता है वह अपने प्रभु का दर्शन करता है ।
(क्रमशः)

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