मंगलवार, 31 मई 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २०*

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*दादू भेष बहुत संसार में, हरिजन विरला कोइ ।*
*हरिजन राता राम सौं, दादू एकै होइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२० मन चरित । कहरवा
संतों मन न्यारा मत१ माँहीं,
साखी शब्द सीख सदगुरु की, पापी परसै२ नहीं ॥टेक॥
साधू ज्ञान महा मिश्री मत३, बंश खाप४ षट् कीन्हे ।
मीठे संग सु मोल विकाणे, अंत काढ़ि सो दीन्हे ॥१॥
बैण५ विश्वंभर मोती माणिक, मन के सूत पिरोये ।
अरस परस अरु बेगर६ दीसे, प्राण प्रवीण सु रोये ॥२॥
मो मन फटक७ हरी यश हीरा, सन्मुख सोई रंगा ।
जन रज्जब पड़दे सो पल के, काढै कपटी अंगा ॥३॥२०॥
मन का चरित्र बता रहे हैं –
✦ संतों ! मन विचार१ में रहकर भी अलग ही रहता है । सदगुरु की साखी शब्दों को सीख कर भी यह पापी मन उनके अर्थ को छूता२ तक नहीं है ।
✦ संतों का महान ज्ञान मिश्री के समान३ है, पंच ज्ञानेन्द्रियाँ और यह मन छ: बांस की सींकों४ के समान हैं । जैसे मधुर मिश्री के साथ बांस की सींकें भी मोल बिकती हैं किंतु अंत में जब मिश्री को काम में लेते हैं तब बांस की सींकें निकाल कर फैंक देते हैं, वैसे ही महान ज्ञान में निपुण भी मनादि छ: विषय संबंध के समान ज्ञान से अलग हो जाते हैं अर्थात विषय राग में फंस जाते हैं ।
✦ विश्वंभर प्रभु के संबंधी वचन५ मोती और माणिक्य के समान हैं । मन सूत के समान है । जैसे सूत में पिरोये हुये मणिये सूत के साथ परस्पर मिले हुये होकर अलग६ ही दीखते हैं, वैसे ही मन प्रभु सम्बन्धी वचनों में रहकर भी अलग ही रहता है । इस मन के चरित्र से व्यथित होकर चतुर प्राणी भी रो पड़ते हैं ।
✦ मेरा मन बिल्लौर७ पत्थर के समान है और हरि का यश हीरे के समान है । हीरे के सामने बिल्लौर पत्थर का बनावटी हीरा रख देने से उसका भी यही हीरे जैसे रंग भासता है किंतु वह पड़दा एक क्षण भर का ही है । जौहरी उसे तत्काल हीरों से निकाल देता है । वैसे ही कपटी मन सर्व साधारण के सामने तो हरि यश से मिलकर, संत सा दिखाई से देता है किंतु परीक्षण संत उसके शरीर को संतत्तव से अलग निकाल देगा अर्थात उसे संत नहीं मानेगा ।
(क्रमशः)

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