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*दादू कर्त्ता करै तो निमष में, राई मेरु समान ।*
*मेरु को राई करै, तो को मेटै फरमान ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नाम करो हम हू सुख पावत,*
*चाह नहीं किमि सेज दिई है ।*
*शीश धरी जब लोग दिये करि,*
*नांहिं करी जल मांहिं बई है ॥*
*आय कही पतिस्याह बुलावत,*
*आवत माँगि करात नई है ।*
*काढ़ि दिखावत उत्तम उत्तम,*
*लेहु पिछान सु आँख भई है ॥२२२॥*
संत सेवा के द्वारा मेरा भी सुयश फैलाकर नाम करिये । इससे हम भी सुख पायेंगे । आपने कहा – मुझे कुछ भी नहीं चाहिये । बादशाह ने बहुत प्रार्थना करके किसी प्रकार एक सुवर्ण की मणि जटित शय्या यह कह कर दी कि इस पर अपने साहिब को शयन कराइयेगा ।
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नामदेवजी ने अपनी साधुता सरलता से उसको अपने शिर पर रख लिया । शीश पर रखते देख कर बादशाह बोला – मैं दश बीस मनुष्य आपके साथ भेजता हूँ वे आपको स्थान तक पहुँचा आयेंगे । आप इसको अपने मस्तक पर मत रखिये । आपने कहा – नहीं भेजिये, मुझे मनुष्यों की कोई आवश्यकता नहीं है । फिर आप स्थान को चल दिये । बादशाह ने पीछे से कुछ लोग रक्षा के लिये भेज ही दिये । आप यमुना तट जहां अति अगाध जल था वहां आये और मन में यह विचार करके कि मुसलमान की बरती हुई शय्या पर मैं मेरे प्रभु को कैसे शयन कराऊंगा ? जल में बहादी ।
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यह देखकर पीछे से आये हुये राज पुरुषों ने शीघ्र ही लौट कर बादशाह को कहा । बादशाह सुनकर चौंक पड़ा और आज्ञा दी नामदेव को लौटा लाओ । नामदेवजी ने आकर पूछा – किस लिये बुलाया है ? बादशाह ने कहा – वैसी ही शय्या नई और बनाना है । इससे उसे यहां लाकर सुनारों को दिखा दीजिये । नामदेवजी ने कहा – तुम मेरे साथ यमुना तट पर चलो । बादशाह साथ गया ।
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वहां नामदेवजी ने वैसी और उससे उत्तम उत्तम अनेक शय्या जल से निकाल कर दिखाई और कहा – जो अपनी हो वह पहचान कर ले लो । तब बादशाह की आखें खुलीं । वह आश्चर्य चकित होकर देखता ही रह गया । नामदेवजी ने एक शय्या बादशाह को देकर शेष सब जल में डालदीं ।
(क्रमशः)

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