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*दादू स्वर्ग पयाल में, साचा लेवे नाम ।*
*सकल लोक सिर देखिये, प्रकट सब ही ठाम ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*मू. इ. – जैदेव इसे कलि में भगता,*
*कविता कवि कीरति ब्रह्म१ के अंसी२ ।*
*छाप परी द्विज के कुल की निज,*
*तासूं कहावत जैदेव बंसी ॥*
*अष्टपदी स्तुति स्तोत्र रचे अरु,*
*गाये पढ़े हरि हेत हुलंसी३ ।*
*राघो कहै मृत से पदमावति,*
*फेरि सजीवन की हरि हंसी४ ॥२३१॥*
जयदेव कलियुग में ऐसे भक्त कवि हुये हैं कि जिनकी कविता की सुकीर्ति कविजन गाते ही रहते हैं । आप ब्राह्मण१ वंश२ के थे ।
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जिस ब्राह्मण कुल में जन्मे थे उस अपने कुल की आपके नाम से छाप ही पड़ गई है । इसी से वह कुल जयदेव वंशी कहलाता है ।
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आपने अष्टपदी स्तुति-स्तोत्र बनायें हैं, जिनको सस्नेह गाने और पढ़ने से हरि अति आनन्दित३ होते हैं ।
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आपकी भक्ति से प्रसन्न होकर हरि ने मरी हुई आपकी धर्म पत्नी पद्मावतीजी को पुनः सजीवन अर्थात् जीवित कर दिया था । वह उठ कर हँसते४ हुये हरि नाम बोलने लगी थीं ।
(क्रमशः)

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