सोमवार, 6 जून 2022

*गोपाल की कहानी*

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*दादू सब दिखलावैं आपको, नाना भेष बनाइ ।*
*जहँ आपा मेटन, हरि भजन, तिहिं दिशि कोइ न जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ भेष का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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एक भक्त - महाराज, गोपाल गोपाल की कहानी क्या है ?
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हँसते) - अरे वह कहानी ! अच्छा सुनो । एक स्थान पर एक सुनार की दुकान है । वे लोग परम वैष्णव है, गले में माला, तिलक है । हमेशा हाथ में हरिनाम का झोला और मुख में सदैव हरिनाम ।
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उन्हें कोई भी साधु ही कहेगा और सोचेगा कि वे पेट के लिए ही सुनार का काम करते हैं, क्योंकि औरत-बच्चों को पालना ही है । परम वैष्णव जानकर अनेक ग्राहक उन्हीं की दूकान में आते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि इनकी दूकान में सोने-चांदी में गड़बड़ी न होगी ।
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ग्राहक दुकान में आते ही देखता है कि वे मुख से हरिनाम जप रहे हैं और बैठे हुए कामकाज भी कर रहे हैं । खरीददार ज्यों जाकर बैठा कि एक आदमी बोल उठा, ‘केशव ! केशव ! केशव !' थोड़ी देर बाद एक दूसरा कह उठा, ‘गोपाल ! गोपाल ! गोपाल !' फिर थोड़ी देर बातचीत होने पर एक तीसरा व्यक्ति कह उठा, ‘हरि हरि हरि ।'
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अब जेवर बनाने की बातचीत एक प्रकार से समाप्त हो रही है । इतने में ही एक व्यक्ति बोल उठा, 'हर हर हर ।' इसीलिए तो इतनी भक्ति प्रेम देखकर वे लोग इन सुनारों के पास अपना रुपया पैसा देकर निश्चिन्त हो जाते हैं । सोचा कि वे लोग कभी न ठगेंगे ।
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"परन्तु असली बात क्या है जानते हो ? ग्राहक के आने के बाद जिसने कहा था, 'केशव केशव' उसका मतलब है, ये सब लोग कौन हैं ? अर्थात् ये ग्राहक लोग कौन हैं ? जिसने कहा, 'गोपाल गोपाल’ - उसका मतलब है, ये लोग गाय के दल हैं । जिसने कहा, 'हरि हरि', इसका मतलब है, ये लोग मूर्ख हैं, तो फिर 'हरि' अर्थात् हरण करूँ ? और जिसने कहा, 'हर हर', इसका मतलब है, इनका सब कुछ हरण कर लो । ऐसे वे परम भक्त साधु थे !" (सभी हँसे ।)
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बंकिम ने बिदा ली । परन्तु एकाग्र मन से न जाने क्या सोच रहे थे । कमरे में दरवाजे के पास आकर देखते हैं, चद्दर छोड़ आये हैं । केवल कमीज पहने हैं । एक बाबू ने चादर उठा ली और दौड़कर उनके हाथ में दे दी । बंकिम क्या सोच रहे होंगे ?
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राखाल आये हैं । वे बलराम के साथ श्रीवृन्दावनधाम गये थे । वहाँ से कुछ दिन हुए लोटे हैं । श्रीरामकृष्ण ने शरत् और देवेन्द्र के पास उनकी बात कही थी और उनसे कहा था कि उनके साथ बातचीत करें । इसीलिए वे राखाल के साथ परिचय करने के लिए उत्सुक होकर आये हैं । सुना, इन्हीं का नाम राखाल है ।
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शरत् और सान्याल ब्राह्मण हैं और अधर हैं जाति के सुवर्ण वणिक् (बनिया) । कहीं उनके घरवाले भोजन करने के लिए न बुला लें इसीलिए जल्दी से भाग गये । नये आये हैं; अभी नहीं जानते कि श्रीरामकृष्ण अधर से कितना स्नेह करते हैं । श्रीरामकृष्ण का कहना है, भक्तों की एक अलग जाति है । उनमें जातिभेद नहीं है ।
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अधर ने श्रीरामकृष्ण को तथा उपस्थित भक्तों को अत्यन्त आदर के साथ बुलाकर सन्तोषपूर्वक भोजन कराया । भोजन के बाद भक्तगण श्रीरामकृष्ण के मधुर वचनों का स्मरण करते करते उनका विचित्र प्रेममय चित्र हृदय में धारण कर घर लौटे ।
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अधर के घर शुभागमन के दिन श्री बंकिम ने श्रीरामकृष्णदेव से उनके मकान पर पधारने का अनुरोध किया था । अतएव थोड़े दिनों के बाद श्रीरामकृष्ण ने श्री गिरीश व मास्टर को उनके कलकत्ते के मकान पर भेज दिया था । उनके साथ श्रीरामकृष्ण के सम्बन्ध में काफी बातचीत हुई । बंकिम ने श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने के लिए फिर आने की इच्छा प्रकट की थी, परन्तु काम में व्यस्त रहने के कारण न आ सके ।
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*पंचवटी के नीचे 'देवी चौधरानी’ का पाठ*
ता. ६ दिसम्बर, १८८४ ई. को श्रीरामकृष्ण ने श्री अधर के घर पर शुभागमन किया था और श्री बंकिम बाबू के साथ वार्तालाप किया था । प्रथम से षष्ठ विभाग तक ये ही सब बातें विवृत हुई ।
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इस घटना के कुछ दिनों के बाद अर्थात् २७ दिसम्बर, शनिवार को श्रीरामकृष्ण ने पंचवटी के नीचे भक्तों के साथ बंकिम रचित 'देवी चौधरानी' के कुछ अंश का पाठ सुना था और गीतोक्त निष्काम धर्म के बारे में अनेक बातें कही थीं ।
श्रीरामकृष्ण पंचवटी के नीचे चबूतरे पर अनेक भक्तों के साथ बैठे थे । मास्टर से पढ़कर सुनाने के लिए कहा । केदार, राम, नित्यगोपाल, तारक (शिवानन्द), प्रसन्न (त्रिगुणातीतानन्द), सुरेन्द्र आदि अनेक भक्त उपस्थित थे ।
(क्रमशः)

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