सोमवार, 6 जून 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २३*

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*पिंड परोहन सिन्धु जल, भव सागर संसार ।*
*राम बिना सूझै नहीं, दादू खेवनहार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२३ विनय । चौताल
राम राय१ राखि लेहू जन तेरा, कोई नाहिं बुद्धि बल मेरा ।
मन मैमंत२ फिरे माया संग, घर आवे नहिं घेरा ॥टेक॥
पंच प्रचंड३ प्राण महि४ पैठे, घर में ही घर घेरा ।
निशि दिन निमष होत नहिं न्यारे, देय रहे दिल डेरा ॥१॥
बाहर विघ्न बहुत विधि बैठे, प्रकीरति५ बिच पेरा६ ।
सुनहुं पुकार सुरति करि सांई, दुख दीरघ बहुतेरा ॥२॥
ये सब मार महर सौं भागे, तब जाय होय निबेरा७ ।
आन उपाय वोत८ नहिं जिव को, जब रज्जब सब हेरा ॥३॥२३॥
मनादि को ठीक करने के लिये प्रभु से विनय कर रहे हैं -
✦ हे राजा१ राम ! मैं आपका जन हूं, मेरी रक्षा करो । मेरा ऐसा कोई बुद्धि बल नहीं है कि उससे मैं अपनी रक्षा कर सकूं । मन मदोन्मत्त२ हुआ माया के साथ फिर रहा है, घेर कर लाने पर भी आत्मारूप घर में नहीं आता ।
✦ विषयों को प्राप्त करने के लिये भयानक३ रूप बनाकर पंच ज्ञानेन्द्रिय प्राणी में४ प्रवेश किये हुये हैं, शरीर रुप घर में रहकर भी उसने अपनी चपलता से शरीर रूप घर को घेर रखा है अर्थात अपने अधीन कर रक्खा है । रात दिन में एक निमेष मात्र भी अलग नहीं होती, हृदय में अपना डेरा दे रक्खा है अर्थात विषय वासना भर रक्खी है ।
✦ उक्त प्रकार भीतर तो मनादि के स्वभाव तो मनादि से स्वभाव५ के बीच पड़ा६ हूँ, और बाहर भी बहुत प्रकार विघ्न बैठे हुये हैं । अत: हे प्रभु ! ध्यान देकर मेरी पुकार सुनो, मुझे बहुत बड़ा दु:ख है ।
✦ ये उक्त सभी दु:ख आपकी कृपा रूप मार से भागेंगे । जब आपकी कृपा होगी तब इससे छुटकारा७ हो जायगा । मैंने सब प्रकार खोज लिया है, अन्य उपाय से जीव को शाँति८ नहीं मिलेगी ।
(क्रमशः)

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