मंगलवार, 14 जून 2022

शब्दस्कन्ध ~ पद #.२०९

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.२०९)*
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*२०९. प्रसिद्ध साधु प्रतिपाल*
*बाबा! को ऐसा जन जोगी ।*
*अंजन छाड़ै रहै निरंजन, सहज सदा रस भोगी ॥टेक॥*
*छाया माया रहै विवर्जित, पिंड ब्रह्माण्ड नियारे ।*
*चंद सूर तैं अगम अगोचर, सो कह तत्त्व विचारे ॥१॥*
*पाप पुण्य लिपै नहीं कबहूँ , द्वै पख रहिता सोई ।*
*धरणि आकाश ताहि तैं ऊपरि, तहाँ जाइ रत होई ॥२॥*
*जीवण मरण न बांछै कबहूँ, आवागमन न फेरा ।*
*पानी पवन परस नहिं लागै, तिहिं संग करै बसेरा ॥३॥*
*गुण आकार जहाँ गम नाहीं, आपै आप अकेला ।*
*दादू जाइ तहाँ जन जोगी, परम पुरुष सौं मेला ॥४॥*
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भा०दी०-हे तात ! कश्चिदेव योगी यश्च मायिकप्रपञ्चनिर्मुक्तो निर्द्वन्द्वावस्थायां विद्यमानः परब्रह्म परमात्मचिन्तनपरो वर्तते । मायिक जालादात्मानं निर्मोचितवान्नस्ति । नहि शरीराध्यासं तनुते । नास्मिन् संसारे कस्मिंश्चिदपि भोगेऽप्यासक्तिर्भवति यस्य । किञ्चेन्द्रियाविषयं ब्रह्मतत्त्वं निजरूपं मत्वा सततं स्मरति । स्वस्याकर्तृत्वमभोक्तृत्वं मत्वा न पुण्यपापैर्वा लिप्यति ।
मूलाधारादिपंञ्चचक्रेभ्यः पृथिव्यादिपञ्चभूतेभ्यो व्यतिरिक्त आज्ञाचक्रे मनोवृत्तिं निधाय ब्रह्मण्यनुरज्यति । न वा दीर्घायुष्यं मरणं वा कामयते । न च लोकान्तरे गमनागमने वाञ्छति । यं जलं वायुरपि न स्पष्टुं शक्नोति । स ब्रह्मण्येव निवसति । न च स: साकारोपासनां करोति । एतादृशो योगी दुर्लभोय: परब्रह्म परमात्मानं प्राप्तुं यतते ।
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हे तात ! ऐसा कोई योगी है कि जो मायिक प्रपंचों को त्याग कर नित्य निर्द्वन्द्व अवस्था में परब्रह्म परमात्मा के चिन्तन रस के उपभोग में ही लगा रहे । मायिक जाल से बहुत दूर रहता हो । न कभी शरीर का अध्यास ही करता और न संसार के पदार्थों के भोग में जरा सी भी आसक्ति करता । इन्द्रियों के अविषय ब्रह्म तत्व को अपना निजरूप मान कर सतत उसी का स्मरण करता हो । अपने को अकर्ता अभोक्ता मानकर न पुण्य करे न पाप में लिप्त हो ।
मूलाधारादि पांच चक्र हैं जो पृथिव्यादि रूप है उनसे भी उपर आज्ञा चक्र में मन की वृति लगाकर ब्रह्म के स्वरूप में सदा अनुरक्त रहे । न अपनी दीर्घायुष्य की कामना करे न शीघ्र मरने की इच्छा करे । जिसको जल वायु छू भी न सकें । सदा ब्रह्म में ही निवास करे न किसी गुणों से प्रेम, न साकार की उपासना ही करता है । ऐसा योगी होना बड़ा ही दुर्लभ है । जो परमात्मा को प्राप्त करने के लिये यत्न करता हो ।
(क्रमशः)

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