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*साहिब जी के नांव में, सब कुछ भरे भंडार ।*
*नूर तेज अनन्त है, दादू सिरजनहार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२६. भेष से काम नहीं होता । कहरवा
संतों स्वांग सरै क्या काम;
सौंज१ सफल साँचे मग चलता, निस्तारे निज नाम ॥टेक॥
शील२ रहै संयम ह्वै प्राणी, भक्ति किये भव पारा ।
ज्ञान गहै तन मन को मारे, बाने३ क्या उपकारा ॥१॥
दीन हुये द्वन्द्वर४ मति नाशै, सेवा सब सुखदाई ।
प्रेम प्रीति परमेश्वर माने, भेषों में क्या भाई ॥२॥
छाजन५ भोजन सिरज्या लहिये, बिन रचना कछु नहीं ।
तो ये बरण६ करैं किस ऊपर७, क्या दर्शन८ मांहीं ॥३॥
नामहि तिरै त्रिगुणी माया, नाम निरंजन पावै ।
जन रज्जब जिव नाम विहूंणा९, झूठा झूठ बणावै ॥४॥२६॥
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भेष से कोई कार्य सिद्ध नहीं होता यह कह रहे हैं -
✦ संतों ! भेष से क्या कार्य सिद्ध होति है ? शरीर रूप सामग्री१ तो सच्चे मार्ग में चलने से सफल होती है और निज नाम का चिन्तन ही उद्धार करता है ।
✦ ब्रह्मचर्य२ से रहें, सब इन्द्रियों का संयम हो, गुरु ज्ञान ग्रहण करके तन मन को मारे, इस प्रकार भक्ति करता है तब संसार से पार होता है, इसमें भेष३ का क्या उपकार है ?
✦ नम्र होने से बुद्धि के द्वन्द्व४ नष्ट होते हैं, सेवा सभी प्रकार का सुख देती है । परमेश्वर हृदय के प्रेम और प्रीति पूर्वक व्यवहार को ही अच्छा मानते हैं, फिर कहो भाई ! भेषों में क्या है ?
✦ वस्त्र५-भोजन भी जो प्रारब्ध में रचा है वही मिलेगा, बिना रचे कुछ नहीं मिलता, तब ये रंग६-बिरंगे भेष किस आधार७ पर करें, इन भेषों८ में क्या है ?
✦ नाम चिन्तन से त्रिगुणात्मिक माया को तैरी जाती है, नाम से ही निरंजन ब्रह्म प्राप्त होते हैं । जो नाम चिन्तन से रहित९ है, यह झूठा प्राणी ही झूठा भेष बनाता है ।
(क्रमशः)
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