सोमवार, 13 जून 2022

*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ २९/३२*

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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ २९/३२*
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तुम थैं प्रगटै चन्द्रमा, तुम थैं प्रगटै सूर ।
कहि जगजीवन रांमजी, तुम थैं प्रगटै नूर ॥२९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आपसे ही चन्द्रमा प्रकट है और सूर्य भी और संत कहते हैं कि तेज भी आपसे ही प्रकट होता है ।
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तुम थैं प्रगटै देव मुनि, तुम थैं प्रगटै साध ।
कहि जगजीवन रांम जी, तुम हरि अगम अगाध ॥३०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आपसे ही देव मुनिजन प्रकट हैं आपसे ही साधुजन प्रकट हैं । हे प्रभु आप अगम अगाध हो ।
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तुम थैं प्रगटै आतमा, तुम थै प्रगटै अंस ।
कहि जगजीवन रांमजी, तुम थैं प्रगटै हंस३ ॥३१॥
(३. हंस--अवधूत योगी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी आपसे ही आत्मा व जीव जो कि आपका ही अंश है प्रकटते हैं और आपसे ही ज्ञानवान प्रभु भक्ति में लीन योगी प्रकटते हैं ।
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तुम थैं प्रगटै जीव सब, तुम थैं प्रगटै जोति ।
कहि जगजीवन रांमजी, तुम थैं रहै न छोति४ ॥३२॥
(४. छोति-पाप, कलंक)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी सब जीव व ज्ञान ज्योति सब जीव आपसे ही पाते हैं । और आपकी कृपा होने से सभी जीव पाप कंलक से मुक्त रहते हैं ।
(क्रमशः)

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