शुक्रवार, 17 जून 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २७*

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*दादू सबही वेद पुराण पढ़ि, नेटि नाम निर्धार ।*
*सब कुछ इन ही मांहि है, क्या करिये विस्तार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२७. नाम बिना भेष से मुक्ति नहीं । एकताल
संतों स्वांग करै क्या जानि,
नाम बिना नहीं निस्तारा, और सकल विधि हानि ॥टेक॥
शिव विरंचि मुनि नाम दृढ़ावै, नाम हि नारद शेषा ।
उनकी समझ नाम मन लागा, कौन करे भ्रम भेषा ॥१॥
वेद कुरान दृढ़ावैं नाम हि, नाम हिं साधु सयाना ।
सोई नाम निरताय१ लिया निज, कहा करै कहु बाना२ ॥२॥
नाम लिये हि सरै३ सब कारज, नाम निरंजन रीझै४ ।
जन रज्जब जिव नाम विहूना५, कोटि स्वांग नहीं सीझै६ ॥३॥२७॥
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प्रभु नाम चिन्तन बिना भेष से मुक्ति नहीं होती, यह कह रहे हैं -
✦ संतों ! भेष क्या करता है ? सो जानो । नाम चिन्तन बिना उद्धार नहीं होता, अन्य सब विधियों से मुक्त रूप कार्य की हानि ही होती है अर्थात मुक्ति नहीं होती ।
✦ शिव, ब्रह्मा, मुनिजन, प्रभु नाम को ही दृढ़ कराते हैं । नारद और शेष भी नाम ही बताते हैं । उनके विचारानुकूल हमारा मन भी नाम में ही लगा है, तब भ्रम भय भेष कौन बनायेगा ?
✦ वेद और कुरान भी नाम को ही दृढ़ कराते हैं । ज्ञानी संत भी नाम ही बताते हैं । उसी निज नाम को विचार१ पूर्वक हमने भी अपना लिया है, फिर कहो भेष२ क्या करेगा ?
✦ नाम चिंतन करने से ही सब कार्य सिद्ध३ होते हैं, नाम चिंतन करने से ही निरंजन राम प्रसन्न४ होते हैं । नाम चिंतन से रहित जीव कोटि भाँति के भेष बनाने पर भी मुक्ति रूप सिद्धावस्था६ को प्राप्त नहीं होता ।
(क्रमशः)

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