रविवार, 5 जून 2022

*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ १७/२०*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ १७/२०*
.
अंड समाहै८ आतमां, इस ही मांहै बास ।
प्रांण पिंड अैसैं किया, सु कहि जगजीवन दास॥१७॥
(८. समांहि=सम्हालता है)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि एक जीवाण्ड में आत्मा का वास प्रभु ही करवा सकते हैं । और फिर उस पिण्ड में प्राण भी किये हैं ।
.
नांम धर्या सेवग कर्यां, सतगुरु सुरति संवारि ।
कहि जगजीवन आदि हरि, देखण९ कौं वपु वारि१० ॥१८॥
(९. देखण कौं=साक्षात्कार के लिये) (१०. वारि=न्यौछावर कर दे)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु ने कृपाकर इस जीव को अपना सेवक बनाया है और गुरु महाराज ने प्रज्ञा देकर दशा सुधार दी ऐसे प्रभु के दर्शन के लिये ये जीवन न्यौछावर करते हैं ।
.
वायु पवन दल अंबु मंहि, अनल झमकै तेज ।
कहि जगजीवन सकल हरि, स्त्रवै धरा के सेज ॥१९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वायु व पवन समूह में व जल में अग्नि का वास होता है । संत कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र धरती पर किसी न किसी रुप में बरसते रहते हैं ।
.
बीज उपावै११ अउर खपावै१२, सम्रथ सब ही ठांम ।
कहि जगजीवन गगन करि, पवन अनल अंबु छांम ॥२०॥
(११. उपावै=उत्पन्न कर दे) (१२. खपावै=नष्ट कर दे)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि बीज उपजाते हैं और उसे खपा भी देते हैं वे सब स्थानों पर सर्व समर्थ हैं । उन्होंने ही आकाश, वायु व अग्नि व छांव बनाये हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें