सोमवार, 20 जून 2022

*गीत गोविन्द हि गावत है सुर*

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*जब लग तन मन नीका,*
*तो लौं जपिले जीवन जीका ।*
*जब दादू जीव आवै, तब हरि के मन भावै ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. ३००)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भूप कहाय दियो सगरे यह,*
*गीत-गोविन्द भली धर गावो।*
*बाँचत गावत है मधुरै स्वर,*
*आय सुनैं हरि है बहु चावो ॥*
*एक मुगल्ल सुनी यह ठानत,*
*वाजि चढ्यो पढि है प्रभु भावो।*
*गीत गोविन्द हि गावत है सुर,*
*श्याम धरयो पद आप सुहावो ॥२३९॥*
गीत-गोविन्द उक्त प्रकार प्रभु को प्रिय जानकर श्रीपुरुषोत्तमपुरी के राजा ने सर्वत्र यह बँढोरा फिरवा दिया कि गीत-गोविन्द को अच्छी भूमि में गाना चाहिये।
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जो मधुर स्वर से गीत गोविन्द को पढ़ते गाते हैं। तब वहाँ हरि आकर सुनते हैं। हरि को गीत-गोविन्द सुनने बड़ा उत्साह है।
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राजा के उक्त ढँढोरे को एक मुगल जाति के मुसलमान ने सुना और अपने मन में यह निश्चय करके कि मैं भी गीत-गोविन्द गाऊँगा, फिर वह एक दिन घोड़े पर चढ़ कर तथा प्रभु के प्रेम में निमग्न होकर, हाथ में गीत-गोविन्द का पद लिखा हुआ लेकर, गाता हुआ चला जा रहा था। उसके हाथ से वह कागज पड़ गया।
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तब भगवान् ने पृथ्वी पर से उठाकर उसे दिया और यह कहते हुये कि--गाओ गाओ, अपने चतुर्भुज रूप का दर्शन भी दिया। गीत गोविन्द के प्रभाव को देवता भी गाते हैं। कारण–जिस पर प्रसन्न होकर श्यामसुन्दर भगवान् ने अपने हाथ से("स्मर गरल खंडन") इत्यादि लिख दिया था इससे इसकी महिमा जहाँ तक कही जाय सो सब अच्छी ही है।
(क्रमशः)

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