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*प्रेम भक्ति जब ऊपजै, निश्चल सहज समाधि ।*
*दादू पीवे राम रस, सतगुरु के प्रसाद ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ उपजन का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(८)सत्त्वगुण तथा ईश्वरलाभ*
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श्रीरामकृष्ण भक्त बालकों की बातें कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (गिरीश से) - ध्यान करता हुआ मैं उनके सब लक्षण देख लेता हूँ । 'घर सँवारूंगा' यह भाव उनमें नहीं है । स्त्री-सुख की इच्छा नहीं है । जिनके स्त्री है भी, वे उसके साथ नहीं सोते । बात यह है कि रजोगुण के बिना गये, शुद्ध सत्त्वगुण के बिना आये, ईश्वर पर मन स्थिर नहीं होता, उन पर प्यार नहीं होता, उन्हें मनुष्य पा नहीं सकता ।
गिरीश - आपने मुझे आशीर्वाद दिया है ।
श्रीरामकृष्ण – कब ? परन्तु हाँ, यह कहा है कि आन्तरिकता के होने पर सब हो जायेगा ।
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बातचीत करते हुए श्रीरामकृष्ण 'आनन्दमयी' कहकर समाधिलीन हो रहे हैं । बड़ी देर तक समाधि की अवस्था में रहे । जरा समाधि से उतरकर कह रहे हैं - "ये सब कहाँ गये ?” मास्टर बाबूराम को बुला लाये । श्रीरामकृष्ण बाबूराम और दूसरे भक्तों की ओर देखकर बोले - “सच्चिदानन्द ही अच्छा है, और कारणानन्द ?"
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इतना कहकर श्रीरामकृष्ण गाने लगे –
“अबकी बार मैंने अच्छा सोचा है । एक अच्छे सोचनेवाले से मैंने सोचने का ढंग सीखा है । जिस देश में रात नहीं है, मुझे उसी देश का एक आदमी मिला है । दिन की तो बात ही न पूछो, सन्ध्या को भी मैंने बन्ध्या बना डाला है । मेरी आँखें खुल गयी हैं, अब क्या फिर मैं सो सकता हूँ ? मैं योग और याग में जाग रहा हूँ । माँ, योगनिद्रा तुझे देकर नींद को ही मैंने सुला दिया है ।
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सोहागा और गन्धक को पीसकर मैंने बड़ा ही सुन्दर रंग चढ़ाया है, आँखों की कूँची बनाकर मैं मणि-मन्दिर को साफ कर लूँगा । रामप्रसाद कहते हैं, भुक्ति और मुक्ति दोनों को सिर पर रखे हुए हूँ और 'काली ही ब्रह्म है' यह मर्म समझकर धर्म और अधर्म, दोनों को मैंने छोड़ दिया है ।"
फिर उन्होंने दूसरा गाना गाया ।
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"यदि 'काली काली' कहते मेरी मृत्यु हो जाय तो गंगा, गया, काशी, कांची, प्रभासादि क्षेत्रों में मैं क्यों जाऊँ ?"
फिर वे कहने लगे, “मैंने माँ से प्रार्थना करते हुए कहा था, माँ, मैं और कुछ नहीं चाहता, मुझे शुद्धा भक्ति दो ।"
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गिरीश का शान्त भाव देखकर श्रीरामकृष्ण को प्रसन्नता हुई है । वे कह रहे हैं, "तुम्हारी यही अवस्था अच्छी है । सहज अवस्था ही उत्तम अवस्था है ।"
श्रीरामकृष्ण नाट्यभवन के मैनेजर के कमरे में बैठे हुए हैं । एक ने आकर पूछा, "क्या आप 'विवाह-विम्राट' देखेंगे ? अब अभिनय हो रहा है ?"
श्रीरामकृष्ण ने गिरीश से कहा, "यह तुमने क्या किया ? प्रह्लाद-चरित्र के बाद विवाह-विभ्राट ? पहले खीर देकर पीछे से कड़वी तरकारी ?"
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अभिनय समाप्त हो जाने पर गिरीश के आदेश से रंगमंच की अभिनेत्रियाँ (actresses) श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करने आयीं । सब ने भूमिष्ठ होकर प्रणाम किया । भक्तगण कोई खड़े, कोई बैठे हुए देख रहे हैं । उन्हें देखकर आश्चर्य होने लगा । अभिनेत्रियों में कोई-कोई श्रीरामकृष्ण के पैरों पर हाथ रखकर प्रणाम कर रही हैं । पैरों पर हाथ रखते समय श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, "माँ, बस हो गया - माँ बस, रहने दो ।" बातों में करुणा सनी हुई थी ।
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उनके प्रणाम करके चले जाने पर श्रीरामकृष्ण भक्तों से कह रहे हैं - "सब वही हैं - एक एक अलग रूप में ।"
अब श्रीरामकृष्ण गाड़ी पर चढ़े । गिरीश आदि भक्तों ने उनके साथ चलकर उन्हें गाड़ी पर चढ़ा दिया ।
गाड़ी पर चढ़ते ही श्रीरामकृष्ण गम्भीर समाधि में लीन हो गये । नारायण आदि भक्त भी गाड़ी में बैठे । गाड़ी दक्षिणेश्वर की ओर चल दी ।
(क्रमशः)

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