बुधवार, 22 जून 2022

*काव्य कथा वरणी सु सुनी जिमि*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*दादू दूध पिलाइये, विषहर विष कर लेइ ।*
*गुण का औगुण कर लिया, ताही को दुख देइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निगुणा का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*काव्य कथा वरणी सु सुनी जिमि,*
*और सुनो अधिकाइ महा है।*
*म्हौर कने मग मांहि मिले उग,*
*जात कहां तुम जात जहाँ है ॥*
*जान गये पकड़ाय दिई सब,*
*चाहत लें हम बात कहा है।*
*दुष्ट कहे चतुराई करी इन,*
*ग्राम हि में पकड़ाय लहां है ॥२४०॥*
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गीत गोविन्द काव्य की कथा तो जैसी सुनी थी वैसी वर्णन कर दी है किन्तु जयदेव जी की कथा और भी सुनो, उससे आपकी महान् अधिकता का परिचय प्राप्त होता है।
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एक समय जयदेव जी मार्ग में जा रहे थे, उनके पास कुछ मोहरें थीं। मार्ग में इन को ठग मिल गये। उनसे आपने पूछा- कहाँ जाते हो ? ठगों ने कहा- जहाँ तुम जाते हो।
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तब जयदेव जी ने जान लिया कि ये ठग हैं। फिर यह विचार करके कि कहीं द्रव्य के लोभ से प्रभु प्राप्ति के साधन रूप मेरे शरीर को नष्ट कर देंगे, अतः वे सब मोहरें सब ठगों को पकड़ा दी और कहा- आपको चाहिये, इसलिये आप लें लँ। मेरी तो बात ही क्या है, मैं भी आपके ही साथ हूँ।
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तब दुष्टों ने आपस में कहा-इसने चतुराई की है। इसने सोचा है, यहाँ देकर ग्राम में इनको पकड़ा कर बाद में ले लूंगा।
(क्रमशः)

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