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*दादू सारों सौं दिल तोरि कर, सांई सौं जोड़ै ।*
*सांई सेती जोड़ करि, काहे को तोड़ै ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १०५*
*'देवी चौधरानी' का पठन*
*दक्षिणेश्वर मन्दिर में श्रीरामकृष्ण*
आज शनिवार है, २७ दिसम्बर, १८८४, पूस की शुक्ला सप्तमी । बड़े दिन की छुट्टियों में भक्तों को अवकाश मिला है । कितने ही श्रीरामकृष्ण का दर्शन करने आये हैं । सुबह को ही बहुतेरे आ गये हैं । मास्टर और प्रसन्न ने आकर देखा, श्रीरामकृष्ण अपने कमरे के दक्षिण दालान में थे । उन लोगों ने आकर श्रीरामकृष्ण की चरण-वन्दना की ।
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श्रीयुत शारदा प्रसन्न ने पहले ही पहल श्रीरामकृष्ण को देखा है ।
श्रीरामकृष्ण ने मास्टर से कहा - "क्यों जी, तुम बंकिम को नहीं ले आये ?"
बंकिम स्कूल का विद्यार्थी है । श्रीरामकृष्ण ने उसे बागबाजार में देखा था । दूर से देखकर ही कहा था, लड़का अच्छा है ।
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बहुत से भक्त आये हुए हैं । केदार, राम, नृत्यगोपाल, तारक, सुरेश आदि और बहुत से भक्तबालक भी आये हुए हैं ।
कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ पंचवटी में जाकर बैठे । भक्तगण उन्हें चारों ओर से घेरे हुए हैं - कोई बैठे हैं, कोई खड़े हैं । श्रीरामकृष्ण पंचवटी में ईंटों के बने हुए चबूतरे पर बैठे हैं । दक्षिण-पश्चिम की ओर मुँह किये हुए हैं । हँसते हुए मास्टर से उन्होंने पूछा, क्या तुम पुस्तक ले आये हो ?
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मास्टर - जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण - जरा पढ़कर मुझे सुनाओ तो ।
भक्तगण उत्सुकता के साथ देख रहे हैं कि कौन सी पुस्तक है । पुस्तक का नाम है 'देवी चौधरानी ।' श्रीरामकृष्ण सुन रहे हैं । देवी चौधरानी में निष्काम कर्म की बातें लिखी हैं ।
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वे लेखक श्रीयुत बंकिमचन्द्र की तारीफ भी सुन चुके थे । पुस्तक में उन्होंने क्या लिखा है, इसे सुनकर वे उनके मन की अवस्था समझ लेंगे । मास्टर ने कहा, यह स्त्री डाकुओं के पाले पड़ी थी, इसका नाम प्रफुल्ल था, बाद में देवी चौधरानी हुआ था । जिस डाकू के साथ यह स्त्री पड़ी थी, उसका नाम भवानी पाठक था ।
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भवानी पाठक बड़ा अच्छा आदमी था । उसी ने प्रफुल्ल से बहुत कुछ साधना करायी थी, और किस तरह निष्काम कर्म किया जाता है, इसकी शिक्षा दी थी । डाकू दुष्टों से रुपया-पैसा छीनकर गरीबों को दिया करता था, उनके भोजन-वस्त्र के लिए । प्रफुल्ल से उसने कहा था, मैं दुष्टों का दमन और शिष्टों का पालन करता हूँ ।
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श्रीरामकृष्ण - यह तो राजा का काम है ।
मास्टर - और एक जगह भक्ति की बातें हैं । भवानी' ने प्रफुल्ल के पास रहने के लिए एक लड़की को भेजा था, उसका नाम था निशि, वह लड़की बड़ी भक्तिमती थी । वह कहती थी, मेरे स्वामी श्रीकृष्ण हैं । प्रफुल्ल का विवाह हो गया था । उसके बाप न था, माँ थी ।
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अकारण एक कलंक लगाकर गाँववालों ने उसे जाति-पाति से अलग कर दिया था; इसीलिए प्रफुल्ल को उसका ससुर अपने यहाँ नहीं ले गया । अपने लडके के उसने और दो विवाह कर दिये थे । प्रफुल्ल अपने पति को बहुत चाहती थी । अब पुस्तक का यह अंश समझ में आ जाएगा ।
(क्रमशः)

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