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*दादू माया सब गहले किये, चौरासी लख जीव ।*
*ताका चेरी क्या करै, जे रंग राते पीव ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२२ माया । कहरवा
राम राय१ महा कठिन२ यहु माया,
जिन माँहिं सकल जग खाया ॥टेक॥
इन माया ब्रह्म से मोहें, शंकर सा अटकाया ।
महा बली सिध साधक मारे, तिनका मान गिराया३ ॥१॥
इन माया षट् दर्शन खाये, बातनि जग बौराया४ ।
छल बल सहित चतुर जन चक्रित५, तिनका कछु न बसाया ॥२॥
मारे बहुत नाम सौं न्यारे, जिन यासौं मन लाया ।
रज्जब मुक्त भयै माया सौं, जो गहि राम छुड़ाया ॥३॥२२॥
माया की कठोरता दिखा रहे हैं –
✦ हे राजा१ राम ! यह माया महान् कठोर२ है । इसने सब जगत को मोहित कर खा लिया है ।
✦ इस माया ने ब्रह्मा जैसों को मोहित किया है । शंकर जैसों को भी फँसाया है । महान योग शक्ति रखने वाले सिद्धों को और साधकों को भी मारकर उनका मान नष्ट३ किया है ।
✦ इस माया ने जोगी, जंगम, सेवड़ों, बौद्ध, सन्यासी, शेष, इन छ: प्रकार के भेषधारियों को भी खाया है और अपनी बातों से सब जगत को पागल४ किया है । जो छल बल के सहित चतुर जन थे, उनको भी इसने चकित५ किया है । उनका इसके आगे कुछ भी वश नहीं चला है ।
✦ जिनने अपने आपको नाम चिन्तन से अलग रख कर इस माया से मन लगाया है, ऐसे बहुत से इसने मारे हैं । माया से तो वे ही मुक्त हुये हैं जिनको आप राम ने पकड़ छुड़ाया है ।
(क्रमशः)

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